अमृतसर की इस घटना के एक दिन बाद ही पंजाब के कपूरथला में एक और युवक को निशान साहिब से बेअदबी के आऱोप में भीड़ ने पीट कर मार दिया। जबकि पुलिस का कहना है कि वह चोरी के इरादे से आया था। यानी वह युवक भी पकड़ा जाता तो और उस पर चोरी के इल्जाम साबित होते तो उसे चाहे जो सजा मिलती, सजा-ए-मौत तो नहीं होती।
धर्म की रक्षा करते-करते इंसान कब खुद भक्षक बन जाता है, इसका पता ही नहीं चलता। लेकिन पंजाब में पिछले दिनों जो घटनाएं घटीं, कम से कम कोई ईश्वर, कोई गुरु, कोई धार्मिक ग्रंथ ऐसी शिक्षा तो नहीं देता है कि एक इंसान के पीछे खून की प्यासी भीड़ लग जाए। कुछ वक्त पहले ऐसी ही क्रूरता हमने पाकिस्तान में देखी थी। जहां पवित्र कुरआन वाले पोस्टर हटाने के आरोप में एक श्रीलंकाई नागरिक को भीड़ ने बेहद क्रूरता के साथ मार दिया था। हम कई मामलों में खुद को पाकिस्तान से बेहतर मानते हैं, लेकिन धर्म के नाम पर जो कट्टरता वहां फैल चुकी है, अब उसी का प्रसार यहां भी हो चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में गोकशी, गौ तस्करी, धर्मांतरण जैसे आरोपों पर अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा की कई वारदात हुई हैं। भीड़ कभी निर्दोष इंसानों को जलाकर मार देती, कभी पत्थरों से कुचलती और इस तरह अपने धर्म का झंडा ऊंचा लहराने की कोशिश करती। हालांकि इसमें इंसानियत कितने नीचे गिरती है, यह देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। इस मामले में कानून भी लाचार नजर आता, क्योंकि जिन लोगों पर कानून के पालन की जिम्मेदारी है, वो खुद धर्म को कठपुतली बनाकर जनता को नचा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआती दौर में कुछेक बार सांप्रदायिक सद्भाव की बातें कही थीं, उसके बाद उनकी आंखों के सामने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता रहा और वे कपड़ों से उनकी शिनाख्त की बात करते रहे। इस मामले में कांग्रेस से उम्मीदें हैं कि वह कम से कम धर्म के नाम पर होने वाली इस अविचारित हिंसा को रोकेगी। लेकिन पंजाब मामले में उसने निराश ही किया है। पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से लेकर विपक्ष के तमाम नेताओं ने स्वर्ण मंदिर में बेअदबी की कोशिश की निंदा की है। कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने तो अपने बड़बोलेपन का परिचय देते हुए कहा कि बेअदबी कहीं हो, चाहे कुरान शरीफ की हो, चाहे भागवद गीता की हो, चाहे श्री गुरुग्रंथ साहिब की हो। बेअदबी करने वालों को लोगों के सामने लाकर फांसी लगा देनी चाहिए। उन्हें इस संविधान की सबसे बड़ी सजा देनी चाहिए। ठीक है कि सिद्धू ने सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों की रक्षा की बात की। लेकिन उन्हें ये भी बताना चाहिए था कि जिस संविधान की बात उन्होंने की, क्या वह भीड़ को किसी की जान लेने की इजाज़त देता है। इसी तरह मुख्यमंत्री समेत तमाम नेताओं को यह बात स्पष्ट करना चाहिए कि क्या भीड़ की हिंसा उन्हें मंजूर है।
पवित्र ग्रंथों की, धार्मिक प्रतीकों की, महापुरुषों की, दूसरों की धार्मिक भावनाओं की इज्जत करना सभी का फर्ज है। जो इस फर्ज को न निभाए, उसे कानून के हिसाब से सजा भी मिलनी चाहिए। लेकिन लोगों को खुद सजा नहीं देनी चाहिए। पंजाब में कांग्रेस सरकार अगर यह संदेश लोगों को देती तो इससे उसकी साख कम नहीं हो जाती। लेकिन धार्मिक भावनाओं को वोट के तराजू के तौलने के फेर में कांग्रेस ऐसा नहीं कर पाई।
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