हिंदू धर्म शास्त्रों में ‘सब जग ईश्वर रूप’ के सिद्धांत में पूरे संसार को भगवान का ही रूप माना गया है, इसलिए संसार के सभी प्राणियों व प्रकृति को भी वंदनीय और अभिवादन योग्य माना गया है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, धर्म शास्त्रों में सदाचार की भी मर्यादा तय की गई है, जिसका व्याघ्रपाद स्मृति में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. इसके अनुसार, केवल पवित्र व सद्गुणी स्त्री व पुरुष ही प्रणाम योग्य है. दुराचारी व दुष्ट लोगों का अभिवादन कभी नहीं करना चाहिए. आज हम आपको उन्हीं लोगों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनसे व्याघ्रपाद स्मृति के अनुसार कभी भी नमस्कार या प्रणाम नहीं करना चाहिए.
इन स्त्री-पुरुषों को नहीं करना चाहिए प्रणाम
व्याघ्रपाद स्मृति के अनुसार, पति प्राण घाती, सूतीका तथा गर्भपात करने वाली स्त्री का अभिवादन नहीं करना चाहिए. इसी तरह पाखंडी, पापी, यज्ञोपवीत के नियत काल का उल्लंघन करने वाला, महापापी, दुष्ट स्वभाव वाला, जूता पहने हुए, उपकार के बदले अपकार करने वाले, मंत्रोच्चारण करते हुए द्विज, शत्रु, भोजन करते हुए या भोजन करने वाले, दौड़ते हुए तथा नास्तिक व्यक्ति को नमस्कार नहीं करना चाहिए. वमन यानी उल्टी करते, जम्हाई लेते व मंजन करते समय भी प्रणाम निषिद्ध है. स्मृति के अनुसार, जो व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करता है, वह खुद अशुद्ध हो जाता है, जो अहोरात्र उपवास से ही शुद्ध हो सकता है.
इन्हें प्रणाम करना जरूरी
व्याघ्रपाद स्मृति के अनुसार देवालय या देव प्रतिमा, सन्यासी तथा त्रिदंडी स्वामी को देखकर, उन्हें प्रणाम जरूर करना चाहिए. ऐसा नहीं करने वाला व्यक्ति प्रायश्चित का भागी होता है. इस संबंध में उन्होंने लिखा है कि- ‘देवप्रतिमां दृष्ट्रा यतिं दृष्ट्रा त्रिदण्डिनम। नमस्कारं न कुर्वीत प्रायश्चित्ती भवेन्नर:।।’
एक हाथ से ना करें नमस्कार
महर्षि व्याघ्रपाद के अनुसार, अभिवादन कभी एक हाथ से भी नहीं करना चाहिए. वे लिखते हैं कि-
जन्मप्रभृति यत्किंचितïï् सुकृतं समुपार्जितम।
तत्सर्वं निष्फलं याति एकहस्ताभिवादनात।।
यानी जो व्यक्ति एक हाथ से अभिवादन करता है, वह आजीवन कमाए हुए पुण्य को खत्म कर देता है.
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