Thursday, September 30, 2021

हर चीज में भारत का नाम घसीटना जरूरी नहीं', BCCI ने आरोप लगाने पर पाकिस्तानी एक्सपर्टस को लताड़ा



BCCI

नई दिल्ली। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को हाल ही में उस वक्त बड़ा झटका लगा जब 18 साल बाद पाकिस्तान की सरजमीं पर द्विपक्षीय सीरीज खेलने पहुंची न्यूजीलैंड की टीम ने वनडे सीरीज के पहले मैच से कुछ देर पहले दौरा रद्द करने का फैसला किया और रावलपिंडी से ही अपने देश लौट गये। न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के इस फैसले ने न सिर्फ पाकिस्तान को बल्कि पूरे क्रिकेट जगत को हैरान कर दिया। हालांकि न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड ने अपनी तरफ से बयान जारी कर साफ किया कि उनकी टीम की सुरक्षा में वहां पर खतरा था जिसके चलते उन्होंने वापस अपने देश लौटने का फैसला किया।

न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड के इस फैसले ने पाकिस्तान के अपने घर पर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को वापस लाने की कोशिशों को बड़ा झटका दिया और अक्टूबर में महिला और पुरुष टीमों को द्विपक्षीय सीरीज के लिये भेजने वाले इंग्लैंड क्रिकेट एंड वेल्स बोर्ड ने भी दौरा रद्द करने का ऐलान कर दिया। ईसीबी के निर्णय को काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा।

फवाद चौधरी ने लगाया था गंभीर आरोप

पाकिस्तान की सरजमीं पर खेले जाने वाले दो अंतर्राष्ट्रीय दौरों के लगातार रद्द हो जाने के फैसले को काफी विरोध और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वहीं पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के सीरीज ने खेलने के पीछे भारत का हाथ बताया। फवाद चौधरी ने दावा किया कि जो मेल न्यूजीलैंड सरकार को भेजी गई थी वो भारत से भेजी गई थी जो कि उनके देश में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को लौटते हुए नहीं देखना चाहता है।

उन्होंने दावा किया था कि न्यूजीलैंड सरकार को टीम की सुरक्षा को लेकर मिला धमकी भरा मेल भारत से वीपीएन का इस्तेमाल करके भेजा गया था जिसमें सिंगापुर के आईपी एड्रेस का इस्तेमाल किया गया।

न्यूजीलैंड-इंग्लैंड दौरे रद्द कराने में भारत का हाथ नहीं

हालांकि इस मुद्दे पर अब तक चुप रहने वाली बीसीसीआई ने पाकिस्तान के इन दावों को खारिज करते हुए मुंहतोड़ जवाब दिया है। बीसीसीआई के सीनियर अधिकारी ने न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के दौरे रद्द करने में भारत की किसी भी तरह की भूमिका होने से इंकार किया है।

क्रिकेट पाकिस्तान की वेबसाइट के अनुसार बीसीसीआई अधिकारी ने कहा,'हम रमीज राजा को बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि उनके नेतृत्व में पीसीबी नई ऊंचाइयों को छुये, लेकिन हम एक बात साफ करना चाहते हैं कि बीसीसीआई का किसी भी तरह से इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के पाकिस्तान दौरों को कैंसिल कराने में कोई हाथ नहीं है।'

हर जगह भारत का नाम घसीटना बंद करो

गौरतलब है दो अंतर्राष्ट्रीय सीरीज के रद्द होने के बाद पाकिस्तान के कई पूर्व क्रिकेटर्स बीसीसीआई और आईपीएल की आलोचना कर रहे हैं और दौरे रद्द करने का कारण बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आईपीएल में हिस्सा ले रहे इंग्लिश खिलाड़ियों को पाकिस्तान दौरे के लिये 8 अक्टूबर को रवाना होना था जिसके चलते वह प्लेऑफ का हिस्सा नहीं बन पाते और इसी बात को मुद्दा बनाकर आरोप लगाया जा रहा है कि आईपीएल के चलते इंग्लैंड ने पाकिस्तान का दौरा रद्द किया है। इस पर बात करते हुए बीसीसीआई अधिकारी ने रमीज राजा के बयान का जिक्र करते हुए पीसीबी को कहा है कि पाकिस्तान हर जगह भारत का नाम घसीटना बंद करे।

उन्होंने कहा,'मुझे नहीं पता कि क्यों कुछ पूर्व पाकिस्तानी खिलाड़ी इन दौरों के रद्द होने के पीछे बेवजह आईपीएल को दोष दे रहे हैं। मैंने कहीं पर पढ़ा था कि रमीज राजा ने कि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने पैसों के लिये अपना डीएनए बदल लिया है क्योंकि वो आईपीएल में खेलना चाहते हैं। वो ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के आक्रामक रवैये के बावजूद उन पर भारत के खिलाफ खुश होकर खेलने का आरोप लगा रहे हैं। हम समझते हैं कि आपको बुरा लग रहा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप हर बात में हर जगह भारत का नाम घसीटें। ऐसा करना बंद कीजिये।'

Eugene Shoemaker: वो इकलौता इंसान जिसकी क़ब्र चांद पर बनी है



चांद पर अब तक 12 लोग मूनवॉक(Moonwalk) कर चुके हैं.

चांद पर अब तक 12 लोग मूनवॉक(Moonwalk) कर चुके हैं. Neil Armstrong वो शख़्स हैं जिन्हें चांद पर पहला कदम रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. मगर एक शख़्स ऐसा भी है जो चांद पर तो कभी नहीं गया पर उसकी कब्र चंद्रमा पर मौजूद है.

चांद पर जाने का था सपना

moon

इस शख़्स का नाम है Eugene Shoemaker, जो अमेरिका के रहने वाले एक भूविज्ञानी थे. उन्हें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश ने साइंस के नेशनल मेडल से सम्मानित किया था. भूगोल को लेकर उनकी जानकारी बहुत ही अद्भुत थी. वो चंद्रमा पर जाने का सपना देखते थे, इसके लिए उन्होंने नासा का टेस्ट भी दिया मगर वो स्वास्थ्य संबंधित कुछ कमियों के चलते फ़ेल हो गए.

एक्सीडेंट में हुई मौत

only person who was buried on moon

Shoemaker ने चांद के कई गड्ढों, घाटियों और पहाड़ों की खोज कर उनका नामकरण किया था. उन्होंने अंतरिक्ष में मौजूद कई धूमकेतुओं की खोज कर उनकी जानकारी लोगों से साझा की थी. इसलिए एक धूमकेतु का नाम उनके नाम पर भी रखा गया है. 1997 में वो एक धूमकेतु की तलाश में जा रहे थे कि उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया और Eugene Shoemaker की मृत्यु हो गई. 

Lunar Prospector मिशन के ज़रिये पहुंचाई अस्थियां


Eugene Shoemaker

उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए Eugene Shoemaker के एक पुराने छात्र ने उनकी अस्थियों को चांद पर ले जाने के लिए NASA से संपर्क किया. वो इसके लिए तैयार हो गए और 1998 में अपने Lunar Prospector मिशन के ज़रिये Eugene Shoemaker की अस्थियों को वहां दफ़ना दिया. इस तरह वो पहले और आख़िरी शख़्स बने जिनकी कब्र चांद पर बनी है.

मेरी 13 साल की बहन से शादी करना चाहते हैं तालिबानी लड़ाके, अफगान स्टूडेंट ने सुनाई आपबीती


तालिबान उसके परिवार पर जान से मारने की धमकी दे रहा है. उसने बताया कि उसे मैसेज मिला है कि उसकी 13 साल की बहन को ले जाएंगे और तालिबानी लड़ाके से शादी करा देंगे.

तालिबानी लड़के कम उम्र की लड़कियों से शादी कर रहे हैं.(FILE PHOTO)

लंदन. अफगानिस्तान (Afghanistan) में आम लोगों पर जुल्म-ओ-सितम का दौर जारी है. वहां तालिबानी लड़ाके (Talibani FIghters) छोटी बच्चियों (Teenage Afghan Girls) के साथ शादी (Marriage) करने के लिए उनके परिवारों पर दबाव डाल रहे हैं. ऐसी ही एक कहानी अफगानिस्तान से भागकर ब्रिटेन आए एक स्टूडेंट की है. उसने बीबीसी को बताया कि वह ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है. वहां अफगानिस्तन में तालिबान उसके परिवार को जान से मारने की धमकी दे रहा है. उसने बताया कि उसे मैसेज मिला है कि वो उसकी 13 साल की बहन को ले जाएंगे और तालिबानी लड़ाके से शादी करा देंगे.

शख्स ने बताया कि अगर उसकी बहन की जबरदस्ती शादी करा दी गई तो वह जिंदगी भर एक कैद में फंस कर जाएगी. यह शख्स तालिबान के कब्जे के बाद शेवनिंग स्कॉलरशिप स्कीम के तहत एयरलिफ्ट किया गया था. लेकिन वह अपनी फैमिली को वहां से नहीं निकाल सका. उस जैसे करीब 35 लोग हैं जो अफगानिस्तान से यूके इस स्कॉलरशिप के जरिए आए हैं. इसे विदेश मंत्रालय से फंड किया जाता है, ये स्कॉलरशिप दुनियाभर से होशियार स्टूडेंट्स को ब्रिटेन में पढ़ने का मौका देती है.

बीबीसी की खबर के मुताबिक, तालिबान ने उसे और उसकी मां को धमकी दी है कि उसकी बहन से एक महीने में किसी लड़ाके से शादी करा दी जाएगी. उसने कहा, “बहन की शादी की किसी वहशी पागल से होगी, जो उसके लिए मौत की सजा से भी बदतर होने वाली है, क्योंकि उसे एक तरह से उम्रकैद की सजा मिल जाएगी. वह एक तरह से युद्ध अपराधी बन गई है. वह स्कूल में है, लेकिन तालिबान कहता है कि उसे स्कूल में न होकर शादी करनी चाहिए.”

अफगानी स्टूडेंट ने बताया कि 21 अगस्त को शेवनिंग स्कॉलरशिप की तरफ से उसे ईमेल मिला था. इसमें कहा गया कि वह और उस पर आश्रित लोग तत्काल यूके आ सकते हैं. लेकिन उस वक्त वह काबुल एयरपोर्ट पर खौफनाक मंजर देखकर वह अपने परिवार की जान जोखिम में नहीं डाल सकता था. इसलिए वह उसका परिवार उसके साथ नहीं जा सका.

तालिबान ने मुझे ब्रिटिश एजेंट कहा
अफगान स्टूडेंट ने कहा, “मुझे वॉट्सऐप कॉल आया है, जिसमें तालिबान ने मुझे ब्रिटिश एजेंट कहा. उन्होंने कहा कि वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, लेकिन अब उसकी फैमिली का जीना मुश्किल कर देंगे. तालिबान का मानना है कि अगर आपके इंटरनेशनल कम्युनिटी से किसी भी तरह के लिंक है तो आप देश के इस्लामिक कल्चर के खिलाफ साजिश रच रहे हो.”

साड़ी पहनी महिला को एंट्री नहीं देने वाला रेस्टोरेंट हुआ बंद, अवैध तरीके से संचालन का भी आरोप


मामला 19 सितंबर का है। यह वीडियो अनीता चौधरी नाम की एक महिला ने twitter पर पोस्ट किया था। वो अपनी बेटी का बर्थडे मनाने रेस्टोरेंट आई थी। अनीता ने बताया कि स्टाफ ने उनकी बेटी को एक साइड ले जाकर उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। 
Delhi restaurants permanently closed which denied saree wearing women entry

नई दिल्ली। साड़ी पहनने वाली महिला को रोकने वाला रेस्टोरेंट बंद हो गया है। दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने रेस्टोरेंट के खिलाफ कार्रवाई करते हुए बंद करने का नोटिस दिया था। रेस्टोरेंट बिना लाइसेंस के ही चल रहा था। एसडीएमसी के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि एंड्रयूज गंज के अंसल प्लाजा स्थित एक्विला रेस्तरां को बिना वैध लाइसेंस के संचालन के लिए बंद करने का नोटिस किया था।

क्लोजर नोटिस में रेस्टोरेंट पर लगे कई आरोप

24 सितंबर के क्लोजर नोटिस में कहा गया है कि क्षेत्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य निरीक्षक ने 21 सितंबर को एक जांच के दौरान पाया कि यह सुविधा स्वास्थ्य व्यापार लाइसेंस के बिना और अस्वच्छ परिस्थितियों में चल रही है। उन्होंने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण किया है। नोटिस मिलने के 48 घंटों के भीतर रेस्तरां बंद करने का निर्देश दिया गया। ऐसा नहीं करने पर सीलिंग सहित उपयुक्त कार्रवाई की बात भी कही गई है। 

रेस्टोरेंट मालिक ने बताया, बंद कर दिया नोटिस

रेस्टोरेंट मालिक ने क्लोजर नोटिस का जवाब देते हुए 27 सितंबर को बताया कि उसने व्यापार को बंद कर दिया है। एसडीएमसी हाउस की बैठक में बुधवार को एंड्रयूज गंज के कांग्रेस पार्षद अभिषेक दत्त ने इस मुद्दे को उठाया और पारंपरिक भारतीय पोशाक पहनने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रवेश से इनकार करने वाले किसी भी रेस्तरां, बार या होटल के खिलाफ 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाने की मांग की थी। 

यह है पूरा घटनाक्रम..

मामला 19 सितंबर का है। यह वीडियो अनीता चौधरी नाम की एक महिला ने twitter पर पोस्ट किया था। वो अपनी बेटी का बर्थडे मनाने रेस्टोरेंट आई थी। अनीता ने साड़ी पहनी हुई थी। बेटी ने वेस्टर्न ड्रेस। अनीता ने मीडिया को बताया उन्होंने पहले से बुकिंग करा रखी थी। जब वे लोग रेस्टोरेंट पहुंचे, तो स्टाफ उन्हें घूरने लगा। अनीता ने बताया कि स्टाफ ने उनकी बेटी को एक साइड ले जाकर उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। हालांकि रेस्टोरेंट का स्टाफ तर्क दे रहा है कि महिला के साथ 19 साल की बेटी थी। इस वजह से उन्हें शराब सेवन प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने से रोका गया था। महिला का कहना है कि साड़ी उसकी बेटी की पसंद से पहनी थी। जब उन्हें अंदर जाने से रोका गया, तो वो रोने लगी थी।

स्टाफ ने लगाया था थप्पड़ मारने का आरोप

यह मामला जैसे ही सोशल मीडिया पर तूल पकड़ा; रेस्टोरेंट ने अपनी सफाई दी। इसमें यह भी कहा गया कि महिला ने स्टाफ को थप्पड़ मारा। हालांकि अनीता ने इसे झूठा बताया। अनीता ने यह वीडियो 20 सितंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया था। इसमें होटल स्टाफ यह कहते हुए सुना गया कि 'हम केवल स्मार्ट कैजुअल की अनुमति देते हैं और साड़ी स्मार्ट कैजुअल के तहत नहीं आती है।' महिला ने यह वीडियो राष्ट्रीय महिला आयोग के अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मंत्री हरदीप सिंह पुरी को भी टैग किया था। महिला ने लिखा था- कृपया स्मार्ट आउटफिट के बारे में बताएं, ताकि वो साड़ी पहनना बंद कर दे।

Wednesday, September 29, 2021

उत्तर कोरिया ने हाइपरसोनिक मिसाइल दागी, किम जोंग उन की नई ताकत से अमेरिका को आया पसीना


उत्तर कोरिया ने दावा करते हुए कहा है कि उसने हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण कर लिया है। उत्तर कोरिया के इस दावे के साथ ही पूरी दुनिया के पसीने निकल आए हैं, खासकर अमेरिका भी डरा हुआ नजर आ रहा है। अगर उत्तर कोरिया के दावे में दम है और अगर वास्तव में उत्तर कोरिया ने हाइपरसोनिक मिसाइल का कामयाब परीक्षण कर लिया है, तो फिर सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय शांति की स्थिति भी काफी बदल चुकी है।

  • हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण

    हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण

    उत्तर कोरिया ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक नई विकसित हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण करने का दावा किया है। उत्तर कोरिया की समाचार एजेंसी केसीएनए ने बुधवार को दावा करते हुए बताया है कि, उत्तर कोरिया ने उन्नत हथियार प्रणाली की दौड़ में शामिल विश्व की प्रमुख ताकतों के साथ शामिल हो गया है। उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन, जिन्हें सनकी तानाशाह भी कहा जाता है, उन्होंने ने ह्वासोंग-8 के प्रक्षेपण का निरीक्षण नहीं किया है। हर्मिट साम्राज्य की एक रिपोर्ट में ऐसा दावा किया गया है। आधिकारिक रोडोंग सिनमुन अखबार ने हथियार की एक तस्वीर भी ली है, जिसे आकाश में जाते हुए देखा जा रहा है। उत्तर कोरिया के रक्षा वैज्ञानिकों ने पहले परीक्षण के बाद कहा है कि मिसाइल का नेविगेशन और उसकी स्टेबिलिटी पूरी तरह से सही है। (परीक्षण की तस्वीर)

  • हाइपरसोनिक मिसाइल क्या हैं?

    हाइपरसोनिक मिसाइल क्या हैं?

    हाइपरसोनिक हथियारों को, अगली पीढ़ी का हथियार माना जाता है जिसका उद्देश्य प्रतिक्रिया समय और पारंपरिक हथियार तंत्र इस्तेमाल करने वाले दुश्मनों को खत्म करना होता है। बैलिस्टिक मिसाइल जहां वायुमंडल के ऊपरी सतह में उड़ते हुए दुश्मनों के टार्गेट को हिट करती है, वहीं हाइपरसोनिक हथियार कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। लेकिन, इसकी स्पीड साउंड की स्पीड से पांच गुना ज्यादा होती है। अमेरिका ने भी पिछले हफ्ते हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया है, जिसकी स्पीड 6200 किलोमीटर प्रति घंटा है। वहीं, उत्तर कोरिया की न्यूज एजेंसी केसीएनए ने हाइपरसोनिक मिसाइल को 'रणनीतिक हथियार' बताते हुए कहा है कि हथियार प्रणाली के विकास से उत्तर कोरिया की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि होती है। ( बैलिस्टिक मिसाइल)

  • उत्तर कोरिया की मिसाइल कितनी उन्नत है?

    उत्तर कोरिया की मिसाइल कितनी उन्नत है?

    दक्षिण कोरिया के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ ने बुधवार को कहा है कि, उत्तर कोरिया की हाइपरसोनिक मिसाइल, विकास के शुरुआती चरण में है, जिसे पता लगाए गए वेग और अन्य डेटा से आंका जाता है, और उत्तर कोरिया को अभी इसे पूरी तरह से विकसित करने में काफी समय लगेगा। जब तक कि इसे युद्ध में तैनात नहीं किया जा सकता। आधिकारिक कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी ने कहा कि, मिसाइल ने लॉन्च स्थिरता और 'अलग हाइपरसोनिक ग्लाइडिंग वारहेड' की गतिशीलता और उड़ान विशेषताओं सहित प्रमुख तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा कर लिया है। भले ही दक्षिण कोरिया कह रहा हो कि मिसाइल टेक्नोलॉजी अभी शुरूआती चरण में है, लेकिन अगर पहला चरण पार कर लिया गया है, तो फिर आखिरी चरण पर भी पहुंचा जा सकता है।

  • इस मिसाइल लॉन्च के क्या मायने हैं?

    इस मिसाइल लॉन्च के क्या मायने हैं?

    परीक्षण का मतलब यह हो सकता है कि उत्तर कोरिया अब संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के ग्रुप में शामिल होते हुए हथियारों की तैनाती की दिशा में काफी तेजी से प्रवेश कर रहा है। केसीएनए ने नई मिसाइल को देश के 'रणनीतिक' हथियार के लिए एक महत्वपूर्ण वृद्धि के रूप में वर्णित किया है, जिसका अर्थ है कि उत्तर कोरिया उस सिस्टम का भी निर्माण कर रहा है, जिससे परमाणु हथियार को दागा जा सके। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि मिसाइल परीक्षण के विफल होने की संभावना है। कोरिया एयरोस्पेस यूनिवर्सिटी के मिसाइल विशेषज्ञ चांग यंग-क्यून ने कहा है कि, 'उत्तर कोरिया की एचजीवी टेक्नोलॉजी की अमेरिका, रूस या चीन से तुलना नहीं की जा सकती है। हां, अभी के लिए उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया या जापान तक मार करने वाली टेक्नोलॉजी को जरूर हासिल कर लिया है''।

  • मिसाइल टेस्ट का क्षेत्रीय प्रभाव

    मिसाइल टेस्ट का क्षेत्रीय प्रभाव

    उत्तर कोरिया हो या दक्षिण कोरिया, दोनों अपनी हथियार क्षमताओं में लगातार वृद्धि कर रहे हैं। और अब इस बात की पूरी संभावना है कि इन दोनों देशों के साथ कई और देश काफी तेजी से नये नये हथियार बनाने की दिशा में काफी तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। जिसका असर पड़ोसी देश जापान, चीन के साथ कई और देशों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। पाकिस्तान की मदद से परमाणु हथियार पहले ही बना चुके उत्तर कोरिया ने 1950 में दक्षिण कोरिया पर हमला कर दिया था और उसके ऊपर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं। इस महीने की शुरूआत में ही नॉर्थ कोरिया ने लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल का परीक्षण भी किया था। वहीं, केसीएनए ने कहा कि हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित करना रणनीतिक हथियारों के लिए पंचवर्षीय योजना में पांच 'सर्वोच्च प्राथमिकता' कार्यों में से एक है, ऐसे में अब पूरी संभावना है, कि पूरी दुनिया नये सिरे से विध्वंसक हथियारों की दौड़ में शामिल हो जाएगा।

तालिबान के दोस्‍तों की पड़ताल के लिए अमेरिका में बिल पेश, पाकिस्‍तान भड़का


अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के आतंकवाद निरोधी अभियान और उसकी जवाबदेही को लेकर अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के 22 सीनेटर्स ने एक विधेयक पेश किया है.
सीनेट जिम रीश की अध्यक्षता में ‘अफ़ग़ानिस्तान आतंकवाद निरोधी, निगरानी और जवाबदेही अधिनियम’ पेश किया गया है.
जिम रीश सीनेट फ़ॉरेन रिलेशंस कमेटी के रैंकिंग मेंबर हैं जो इस विधेयक को लेकर आए हैं.
एक ओर जहाँ यह विधेयक बाइडन प्रशासन से अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फ़ौज को तेज़ी से निकालने के फ़ैसले का जवाब मांग रहा है. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान में भूमिका की भी जांच कराना चाहता है.
इस बिल में मांग की गई है कि अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान में नियंत्रण से पहले और बाद में पाकिस्तान की भूमिका की जांच होनी चाहिए. इसके साथ ही पंजशीर घाटी में तालिबान के हमले को लेकर भी पाकिस्तान की जांच करने की मांग की गई है.
पाकिस्तान ने इस विधेयक पर कड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की है. पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मज़ारी ने कहा है कि पाकिस्तान को एक बार फिर ‘आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध’ में अमेरिका का साथ देने की क़ीमत चुकानी होगी.
विधेयक में और क्या मांग की गई
प्रस्तावित विधेयक में मांग की गई है कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के 20 साल लंबे अभियान के दौरान तालिबान का किसने समर्थन किया, अगस्त के मध्य में काबुल पर नियंत्रण करने में किसने मदद की और पंजशीर घाटी में हमला करने पर किसने समर्थन किया – इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की जानी चाहिए.
प्रस्तावित विधेयक में विदेश मंत्री से मांग की गई है कि उनकी निगरानी में रक्षा मंत्री और नेशनल इंटेलिजेंस सब साथ मिलकर इस पर विस्तृत रिपोर्ट दें.
साथ ही यह भी मांग की गई है कि यह रिपोर्ट संबंधित समितियों के पास तक ‘इस विधेयक के क़ानून बनने के कम से कम 180 दिनों तक और अधिकतम एक साल के अंदर तक पहुंच जानी चाहिए.’
इसमें वो पहली रिपोर्ट शामिल करने के लिए कहा गया है जो कि पाकिस्तान सरकार समेत स्टेट और नॉन स्टेट एक्टर्स के समर्थन का आंकलन करे जिसने 2001 से 2020 के बीच तालिबान को समर्थन दिया है.
इस समर्थन में वित्तीय सहायता, ख़ुफ़िया सहायता, रसद और चिकित्सा सहायता, प्रशिक्षण, उपकरण, और सामरिक, संचालन या रणनीतिक दिशा जैसे बिंदुओं को शामिल किया गया है.
इसके साथ ही विधेयक में पंजशीर घाटी में तालिबान और उसके विरोधी गुट के बीच सितंबर 2021 में हुए संघर्ष में पाकिस्तान सरकार समेत उन स्टेट और नॉन-स्टेट एक्टर्स की भूमिका का आंकलन करने को कहा गया है जिसने तालिबान का समर्थन किया.
सीनेटर रीश ने अपने दफ़्तर से जारी बयान में कहा, “हम अफ़ग़ानिस्तान से बाइडन प्रशासन के बेढंग तरीक़े से वापसी के गंभीर प्रभावों को देख रहे हैं.”
“हम अमेरिका के ख़िलाफ़ एक नए आतंकी ख़तरे का सामना कर रहे हैं और तालिबान ग़लत तरीक़े से संयुक्त राष्ट्र में मान्यता चाहते हैं. यहां तक कि वे अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को दबा रहे हैं.”
सीनेटर रीश ने कहा कि वो इस विधेयक को पेश करके गर्व महसूस कर रहे हैं जो अमेरिका की साख़ को दोबारा बनाने को लेकर बेहद ज़रूरी है.
उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि कमिटी इसको जल्द देखेगी ताकि हम उनकी तुरंत मदद कर सकें जो पीछे छूट गए हैं और देर होने से पहले अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की सुरक्षा कर सकें.”
प्रस्तावित विधेयक में अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद, नशा तस्करी और मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर तालिबान और दूसरी इकाइयों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है. इसमें तालिबान को समर्थन देने वाली विदेशी सरकारों पर भी प्रतिबंध लगाने को कहा गया है.
पाकिस्तान ने जताई नाराज़गी
इस विधेयक पर पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मज़ारी ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा है कि पाकिस्तान को ‘आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई’ में एक बार फिर अमेरिका का साथी बनने की भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी.
उन्होंने इसको लेकर कई ट्वीट किए हैं. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा है, “20 सालों तक अमेरिका और नेटो शक्तिशाली आर्थिक और सैन्य रूप से मौजूद रहा अब जब बिना स्थाई शासन संरचना के वो अराजकता छोड़ गया है तो पाकिस्तान को इस नाकामी के लिए बलि का बकरा बनाया जा रहा है.”
अगले ट्वीट में मज़ारी ने कहा, “यह कभी भी हमारा युद्ध नहीं था. हमने 80,000 जानें गंवाईं, एक बर्बाद अर्थव्यवस्था पाई, हमारे अमेरिकी ‘साथियों’ ने 450 से अधिक ड्रोन हमले किए और हमारे आदिवासी क्षेत्रों और लोगों पर इन हमलों के विनाशकारी परिणाम सामने आए.”
साथ ही उन्होंने अमेरिकी सीनेट से ‘गंभीर आत्मनिरीक्षण’ करने को कहा है.
पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री ने एक और ट्वीट में कहा, “अब बहुत हो चुका. यह समय है कि अफ़ग़ानिस्तान में रहीं उन ताक़तों को अपनी नाकामियों को देखना चाहिए न कि पाकिस्तान को निशाना बनाना चाहिए जिसने एक सहयोगी होने पर भारी क़ीमत चुकाई है और युद्ध के दुष्परिणामों से पीड़ित रहा है जो कि उसका कभी था ही नहीं.”

लक्षद्वीप पर कब्जा करना चाहता था पाकिस्तान, भारत ने लहरा दिया अपना तिरंगा और फिर इस दबे पांव भागी पाक सेना


भारत में वर्तमान में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं. जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब दो अलग-अलग प्रदेश हो चुके हैं, जबकि दादरा और नगर हवेली के साथ दमन और दीव को मिलाकर एक कर दिया गया है. अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, पुड्डुचेरी, चंडीगढ़, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह है, जबकि इसी की तरह कई द्वीपों को मिलाकर बनाया गया लक्षद्वीप है.

करीब 33 वर्ग किलोमीटर इलाके वाले प्रदेश लक्षद्वीप के बारे में बताया जाता है कि वहां अगर भारतीय प्रशासनिक पदाधिकारियों और पुलिस के पहुंचने में थोड़ी देर हो जाती तो वहां पाकिस्तान अपना कब्जा जमा सकता था. ऐसे में लक्षद्वीप आज भारत का हिस्सा नहीं होता. 1947 में देश की आजादी के बाद पाकिस्तान लक्षद्वीप पर कब्जा करने के फेर में था. हालांकि भारत के आगे वह अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाया.

कहां है लक्षद्वीप?

लक्षद्वीप भारत के दक्षिण पश्चिम हिस्से में केरल से सटे अरब सागर में स्थित है. लक्षद्वीप के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो लाख द्वीप होगा. हालांकि अधिकारिक आंकड़ों में लक्षद्वीप कुल 36 द्वीपों को मिलाकर बना द्वीप-समूह है. हालांकि इनमें से 10 द्वीपों पर ही आबादी रहती है. वहीं भारतीय पर्यटकों को केवल 6 द्वीपों पर जाने की अनुमति है और विदेशी पर्यटकों को केवल 2 द्वीपों पर. लक्षद्वीप केंद्र शासित प्रदेश है यानी यहां सीधे केंद्र सरकार का नियंत्रण है. केरल से आप लक्षद्वीप के लिए सीधे निकल सकते हैं.

यहां देखिए नक्‍शा

Lakshadweep Map

आजादी के बाद पाकिस्तान की ​नीयत खराब!

लंबे संघर्षों के बाद वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब लक्षद्वीप पर दोनों में से किसी का भी नियंत्रण नहीं था. बताया जाता है कि पाकिस्तान के पहले और तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के मन में विचार आया कि इस मुस्लिम बहुल इलाके को अपने कब्जे में ले लिया जाए. तब बांग्लादेश भी पाकिस्तान का हिस्सा था और पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. देश को आजादी मिले अभी महीना भर भी नहीं हुआ था कि अगस्त के आखिर में लियाकत अली ने लक्षद्वीप को अपने ​अधिकार में करना चाहा. पाकिस्तान ने अपना एक युद्धपोत लक्षद्वीप के लिए रवाना कर दिया.

पटेल की सक्रियता से लहराया गया तिरंगा

लक्षद्वीप को लेकर दरअसल भारत और पाकिस्तान दोनों संशय में थे. दोनों को यह पता नहीं था कि किसी ने उसपर अपना दावा ठोका है या नहीं, लक्षद्वीप को नियंत्रण में लिया है कि नहीं. भारत के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने मन में ठान लिया कि किसी भी सूरत में लक्षद्वीप पर पाकिस्तान का अधिकार नहीं होने देंगे.

उन्होंने केरल के त्रावणकोर में राजस्व कलेक्टर को निर्देश दिया कि वे तुरंत पुलिस की टीम के साथ जाएं और लक्षद्वीप पर अपना अधिकार स्थापित करें. वहां भारतीय तिरंगा लहराएं, ताकि पाकिस्तान को पता चले कि वह इलाका भारत का है. इस बात को लेकर राजस्व कलेक्टर ने गंभीरता दिखाई और तुरंत लक्षद्वीप पहुंच गए.

वहां पहुंचते ही उन्होंने तुरंत भारतीय झंडा लहरा दिया. बताया जाता है कि तिरंगा लहराए जाने के कुछ ही देर बाद पाकिस्तान का युद्धपोत भी वहां पहुंचा, लेकिन तिरंगा देखते ही वे दबे पांव वापस लौट गए. तब से लक्षद्वीप भारत का अभिन्न अंग है. 1956 में भारत सरकार ने यहां के सभी द्वीपों को मिलाकर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया और 1973 में इन द्वीपसमूहों का नाम लक्षद्वीप कर दिया गया.

कहीं तालिबान के हाथ ना लग जाएं पाकिस्तानी परमाणु हथियार, शीर्ष अमेरिकी जनरलों ने जताई गहरी चिंता


 अफगानिस्तान से अमेरिका जिस तरह से निकला है, उसके बाद अमेरिका में जमकर बवाल मचा हुआ है। अमेरिका के शीर्ष जनरल ने दावा किया है कि उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को चेतावनी दी थी कि अफगानिस्तान से इतनी जल्दबाजी से निकलने की वजह से पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। अमेरिका के टॉप जनरल मार्क मिले ने अमेरिकी संसद द्वारा अफगानिस्तान के मुद्दे पर जांच के लिए बनाई गई कमेटी के सामने ये बयान दिया है। अमेरिका के शीर्ष सैन्य अधिकारी ने गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि 'उन्हें डर है कि तालिबान के हाथ में पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार जा सकते हैं'।

  • अमेरिका के शीर्ष जनरल का दावा

    अमेरिका के शीर्ष जनरल का दावा

    अमेरिकी सेना के प्रमुख जनरल मार्क मिले ने कहा कि, 'हमें पाकिस्तान के तालिबान के पनाहगार की भूमिका की पूरी तरह से जांच करने की जरूरत है''। उन्होंने कहा कि, ''तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी सैन्य दबाव को कैसे झेला, इसकी जांच करने की आवश्यकता है और हमें उस तरफ जांच करने की जरूरत है, कि आखिर तालिबान की मदद किन ताकतों ने की है।'' जनरल मार्क मिले और यूएस सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने भी चेतावनी दी थी, कि तालिबान पाकिस्तान से अब जिस तरह से निपटना होगा, वह पहले की तुलना में अब काफी अलग होगा, और पाकिस्तान और तालिबान के बीच का संबंध अब और जटिल हो जाएगा।'' जनरल मैकेंजी ने अमेरिका के सांसदों से कहा कि, 'मेरा मानना है कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के परिणामस्वरूप तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंध और अधिक जटिल होने जा रहे हैं।' (फाइल तस्वीर)

  • महत्वपूर्ण हवाई गलियारा

    महत्वपूर्ण हवाई गलियारा

    सेंटकॉम प्रमुख ने यह भी कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण पाकिस्तान एयरस्पेस के इस्तेमाल पर बातचीत चल रही थी, जिसमें वो भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि, 'पिछले 20 वर्षों में हम पश्चिमी पाकिस्तान में जाने के लिए एयर बुलेवार्ड का उपयोग करने में सक्षम रहे हैं और यह कुछ ऐसा बन गया है, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है, साथ ही संचार स्थापित करने के लिए कुछ लैंडलाइन भी है,''। उन्होंने कहा कि, 'और हम आने वाले दिनों और हफ्तों में पाकिस्तानियों के साथ काम करेंगे ताकि यह देखा जा सके कि भविष्य में यह रिश्ता कैसा दिखने वाला है।' अमेरिका के दोनों शीर्ष जनरलों ने इस बात पर काफी गहरी चिंता जताई है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार आतंकवादियों के हाथों में पड़ने की संभावना है।

  • 'एक राज्य बनाया, एक राष्ट्र नहीं'

    'एक राज्य बनाया, एक राष्ट्र नहीं'

    इससे पहले सुनवाई में, अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने सीनेटरों से कहा कि अमेरिका ने अफगानिस्तान को एक राज्य बनाने में मदद की, लेकिन वे अफगान राष्ट्र का निर्माण करने में विफल रहे और इसलिए अगस्त के मध्य में इतनी आसानी से एक देश तालिबान के हाथ में चला गया। अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद से अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध को समाप्त करने के बाद से कांग्रेस के समक्ष अमेरिकी जनरलों द्वारा यह पहली गवाही थी। जिसमें अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि 'हमने एक राज्य बनाने में मदद की, लेकिन हम एक राष्ट्र नहीं बना सके,'।

  • परेशान करने वाली सच्चाई

    परेशान करने वाली सच्चाई

    अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अमेरिकियों से काबुल के पतन के लिए किसी को दोष देने से पहले 'कुछ असहज सच्चाइयों पर विचार' करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा, 'हमने उनके वरिष्ठ रैंकों में भ्रष्टाचार और खराब नेतृत्व की गहराई को पूरी तरह से नहीं समझा, हमने अपने कमांडरों के राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा लगातार और अस्पष्टीकृत रोटेशन के हानिकारक प्रभाव को नहीं समझा,'। उन्होंने कहा कि, 'हमने दोहा समझौते के मद्देनजर तालिबान कमांडरों के साथ किए गये समझौते का असर अफगानिस्तान के स्थानीय नेताओं पर क्या पड़ेगा, इसे नहीं समझा। उन्होंने कहा कि, असलियत ये है कि दोहा समझौते के बाद अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक नेताओं और अफगानिस्तान की सेना का मनोबल काफी गिर गया था'

अफगानिस्तान: तालिबानी सरकार ने लिखा भारत को पत्र, काबुल के लिए फिर से फ्लाइट शुरू करने की मांग


नई दिल्ली: 15 अगस्त को अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबानी लड़कों ने अपना कब्जा कर लिया था, जिसके बाद पूरे देश में भगदड़ मच गई थी। लोग अपनी जान बचाने के लिए दूसरे देश भागने की कोशिश कर रहे थे। इस बीच वहां कई हिंसक घटनाएं भी सामने आई। तालिबान की ओर से अफगानिस्तान की सत्ता हथियाने के बाद कई देशों ने वहां से लोगों को निकालने का ऑपरेशन किया, जिसमें भारत भी शामिल था। तालिबान की स्थिति को भांपते हुए भारत ने 15 अगस्त के बाद अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के लिए सभी कमर्शियल फ्लाइट्स का संचालन बंद कर दिया था। वहीं अब खबर आ रही है कि तालिबानी सरकार इस्लामिक अमीरात ने डीजीसीए को लिखी चिट्ठी लिखकर फिर से विमान सेवा शुरू करने की मांग की है।

taliban flight

जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार इस्लामिक अमीरात ने काबुल के लिए वाणिज्यिक उड़ानें फिर से शुरू करने के लिए डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) को पत्र लिखा है। जिसके बाद नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) की तरफ से इस चिट्ठी की समीक्षा की जा रही है।

इस पत्र के जरिए अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात घोषित होने के बाद वहां की तालिबानी सरकार की तरफ से पहली आधिकारिक बातचीत की पहल की गई है। आपको बता दें कि 15 अगस्त के बाद से ही भारत ने अफगानिस्तान के लिए अपनी सभी उड़ानें बंद कर दी थी, हालांकि तालिबान के डर के बीच फंसे भारतीय नागरिकों को वहां से लाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया था, जिसके तहत स्पेशल विमानों के जरिए काबुल एयरपोर्ट से लोगों को देश लाने की अनुमति मिली थी।

एयरशो में चीन ने दुनिया को डराया, मिसाइलों से लैस ड्रोन पलक झपकते पहुंच जाएगा दिल्ली !



टेक डेस्क । चीन ने अंतरराष्ट्रीय एयर शो में दुनिया के समक्ष अपनी सामरिक शक्ति का जबरदस्त मुजायरा पेश किया है। इंटरनेशनल एयर शो के जरिए चीन ने अपनी बढ़ी हुई ताकत का प्रदर्शन किया है। 13वां अंतर्राष्ट्रीय एयरोस्पेस एक्सपो 28 सितंबर से 3 अक्टूबर तक चीन के क्वांगतोंग प्रांत के झुआई अंतरराष्ट्रीय एयरशो सेंटर में आयोजित किया गया  है। चीन ने  भारत सहित दुनिया को अपनी ताकत दिखाई है, इस शो में प्रदर्शित एक मिसाइल युक्त ड्रोन जो किसी  एक्शन के पहले दिल्ली पहुंच सकता है, देखें इसकी खासियत

China scared the world at the airshow Drones equipped with missiles will reach Delhi in the blink of an eye

ड्रोन तय कर सकता है पेइचिंग से दिल्ली की दूरी
चीन ने झुहाई इंटरनेशनल एयर शो के शुरू होने से पहले ही दुनिया को अपने डबल इंजन वाले आर्म्ड ड्रोन की ताकत दिखा दी थी । चीन के इस नए ड्रोन का नाम सीएच-6 (CH-6) है, जिसे चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन ने बनाया है। इसकी हमलावर रेंज 4500 किलोमीटर बताई जा रही है, जो चीन की राजधानी पेइचिंग से दिल्ली तक की 3782 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। आज से पहले चीन ने ड्रोन के केवल मॉडल को ही प्रदर्शित किया था। 
 

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800 किमी प्रति घंटा की है स्पीड 
चायना रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सीएच-6 ड्रोन की टोही मिशन के दौरान फ्यूल कैपिसिटी 3.42 टन की है। अगर टोही और हमलावर मिशन में ड्रोन का इस्तेमाल किया गया तो यह 1.72 टन के ईंधन के साथ टेकऑफ कर सकता है। इस ड्रोन की कुल लंबाई 15 मीटर, पंखों की लंबाई 20.5 मीटर और ऊंचाई 5 मीटर है। यह ड्रोन 800 किमी प्रतिघंटा की स्पीड से उड़ान भी भर सकता है। इस ड्रोन की क्रूज स्पीड 500 किलोमीटर प्रति घंटा से 700 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसकी अधिकतम क्रूज ऊंचाई 10 किलोमीटर बताई जा रही है।

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चीन ने अंतर्राष्ट्रीय एयरोस्पेस एक्सपो में न्यू टेक्नालॉजी वाले ड्रोन से लेकर जेट का प्रदर्शन किया है। इसे चीन में आयोजित सबसे बड़ा एयर शो बताया गया है। इस एयर शो में शांति की रक्षा करने और देश के आर्थिक निर्माण की सेवा करने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। बता दें कि चीन दुनिया की बादशाहत पाने के लिए लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है।  एयर शो के दौरान मंगलवार को हवाई हमले करने में सक्षम करने वाले निगरानी ड्रोन का अनावरण भी किया गया। ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस एजेंसी जेन्स के अनुसार अपने लंबे पंखों के साथ यह ड्रोन मिसाइलों को भी ले जा सकता है।

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इस एयर शो  100 से अधिक विमानों का प्रदर्शन किया जाएगा। एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्रों में दुनिया के उन्नत स्तर वाले नए उत्पादों, नई प्रौद्योगिकियों, नई सेवाओं और नई उपलब्धियों की विश्व प्रीमियर, चीन में पहली प्रदर्शनी है। वर्तमान एक्सपो में चीन 150 स्व-निर्मित विमानन उपकरणों और प्रौद्योगिकी परियोजनाओं का प्रदर्शन कर रहा है, जिनमें से लगभग 40 प्रतिशत पहली बार प्रदर्शित की जाएंगी।

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1996 में अपनी स्थापना के बाद से, चीन अंतर्राष्ट्रीय एयरोस्पेस एक्सपो एयरोस्पेस और रक्षा के क्षेत्रों में एक उच्चस्तरीय अंतरराष्ट्रीय मेला बन गया है और दुनिया के शीर्ष पांच एयर शो में से एक है।

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13वां अंतर्राष्ट्रीय एयरोस्पेस एक्सपो 28 सितंबर से 3 अक्टूबर तक चीन के क्वांगतोंग प्रांत के झुआई अंतरराष्ट्रीय एयरशो सेंटर में आयोजित किया गया है। इस एयर शो में चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, रूस, कनाडा और ब्राजील सहित लगभग 40 देशों और क्षेत्रों की 700 कंपनियां भाग ले रही हैं।

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इस बार यह एयर शो दर्शकों के सामने आयोजित किया जा रहा है।  इसके अलावा, प्रदर्शनी हॉल की संख्या 8 से बढ़कर 11 की गई है।  इनडोर प्रदर्शनी का क्षेत्रफल एक लाख वर्ग मीटर है, जो 14 फुटबॉल मैदानों के बराबर है, जबकि बाहरी प्रदर्शनी का क्षेत्रफल 3.6 लाख वर्ग मीटर है, जो 50 फुटबॉल मैदानों के बराबर है। 

Tuesday, September 28, 2021

क्‍या मोदी सरकार लागू करेगी नए लेबर कोड्स? 3 दिन बाद से करनी होगी 12 घंटे की नौकरी!


नई श्रम संहिता लागू होने से कर्मचारियों की सैलरी पर भी असर पड़ेगा.

नई श्रम संहिता लागू होने से कर्मचारियों की सैलरी पर भी असर पड़ेगा.

नई दिल्‍ली. देश की ज्‍यादातर निजी और सरकारी कंपनियों में काम करने वालों के सामने इस समय यही बड़ा सवाल है कि क्‍या ठीक 3 दिन बाद यानी 1 अक्‍टूबर 2021 से उन्‍हें 12 घंटे नौकरी (Working Hours) करनी पड़ेगी. क्‍या अगले महीने से केंद्र की मोदी सरकार नए लेबर कोड (Labour Codes) के नियमों को लागू करेगी? अगर ये नियम लागू होते हैं तो सिर्फ काम के घंटे ही नहीं बढ़ेंगे बल्कि आपके हाथ आने वाली सैलेरी भी घट (Take-home Salary Cut) सकती है. हालांकि, प्रॉविडेंट फंड (PF) का पैसा बढ़ जाएगा. इन सभी सवालों के बीच पता लगा है कि श्रम मंत्रालय (Labour Ministry) नए नियमों को 1 अक्टूबर 2021 से लागू नहीं कर पाएगी. इसकी पहली वजह राज्यों की तैयारी नहीं होना और दूसरी उत्तर प्रदेश समेत देश के 5 राज्यों में होने वाले चुनाव (Assembly Elections) को बताया जा रहा है.

घट जाएगी टेक होम सैलरी, बढ़ेगा पीएफ-ग्रैच्‍युटी
नया श्रम कानून लागू होने के बाद कर्मचारियों की टेक होम सैलरी घट जाएगी. वहीं, कंपनियों को ज्‍यादा पीएफ दायित्व का बोझ उठाना पड़ेगा. यही नहीं नए ड्राफ्ट रूल के मुताबिक, मूल वेतन कुल वेतन का 50 फीसदी या ज्‍यादा होना चाहिए. इससे ज्यादातर कर्मचारियों की सैलरी का स्ट्रक्चर बदल जाएगा. बेसिक सैलरी बढ़ने से पीएफ और ग्रेच्युटी के लिए कटने वाला पैसा बढ़ जाएगा. इसमें जाने वाला पैसा बेसिक सैलरी के अनुपात में होता है. अगर ऐसा होता है तो आपके घर आने वाली सैलरी घट जाएगी. वहीं, रिटायरमेंट पर मिलने वाला पीएफ और ग्रैच्युटी का पैसा बढ़ जाएगा.

कर्मचारियों के काम करने के घंटे में होगी बढ़ोतरी
श्रम संहिता के नए नियमों में कामकाज के अधिकतम घंटों को बढ़ाकर 12 करने का प्रस्ताव रखा गया है. हालांकि, श्रम संगठन 12 घंटे नौकरी करने का विरोध कर रहे हैं. कोड के ड्राफ्ट रूल्‍स में 15 से 30 मिनट के बीच के अतिरिक्त कामकाज को भी 30 मिनट गिनकर ओवरटाइम में शामिल करने का प्रावधान है. मौजूदा नियम में 30 मिनट से कम समय को ओवरटाइम योग्य नहीं माना जाता है. ड्राफ्ट नियमों में किसी भी कर्मचारी से 5 घंटे से ज्यादा लगातार काम कराने की मनाही है. कर्मचारियों को हर 5 घंटे के काम के बाद आधा घंटे का आराम देना होगा.

संसद के दोनों सदनों में किया जा चुका है पारित
संसद के दोनों सदनों ने श्रम कानून की इन चार संहिताओं को पारित कर दिया है. केंद्र के अलावा राज्य सरकारों को भी इन संहिताओं, नियमों को अधिसूचित करना जरूरी है. इसके बाद ही ये नियम राज्यों में लागू हो पाएंगे. ये नियम 1 अप्रैल 2021 से लागू होने थे, लेकिन राज्यों की तैयारी पूरी नहीं होने के कारण इन्हें टाल दिया गया.

भारतीय सीमा में घुसे सौ चीनी सैनिक, हमारे पुल को क्षतिग्रस्त कर लौटे


चीन के सैनिकों की गतिविधियों की जानकारी लगते ही अधिकारी हरकत में आ गए। सीमा क्षेत्र में पड़ोसी देश की गतिविधियों को देखते हुए खुफिया तंत्र भी सक्रिय हो गया है।

chinese soldiers seen in barahoti Area
तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। 

उत्तराखंड के चमोली से लगे चीनी सीमा इलाके ‘बाड़ाहोती’ में करीब 100 सैनिक देखे गए। अंग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स मे छपी खबर के अनुसार PLA सैनिक भारतीय सीमा में दाखिल हुए और कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाने के बाद अपने इलाकों में लौट गए। इसमें एक पुल भी शामिल था जोकि चीनी सैनिकों के निशाने पर आया। चीन के सैनिकों की गतिविधियों की जानकारी लगते ही अधिकारी हरकत में आ गए। सीमा क्षेत्र में पड़ोसी देश की गतिविधियों को देखते हुए खुफिया तंत्र भी सक्रिय हो गया है।

हाल के कुछ सालों में बाड़ाहोती इलाका, प्रमुख फ्लैशप्वाइंट में शुमार नहीं रहा है हांलाकि यहां छोटी-मोटी घटनाएं जरूर रिपोर्ट की जाती रही हैं। 1962 के युद्ध से पहले चीन ने इसी इलाके में घुसपैठ को अंजाम दिया था। 1954 में पहली बार चीनी सैनिकों को इस इलाके में उपकरणों के साथ देखा गया था, जोकि बाद में बढ़ता चला गया था। 30 अगस्त को भी करीब 100 सैनिक सीमा के अंदर दिखाई दिए थे लेकिन भारतीय सेना के जवान पहुंचते, चीनी सैनिक बॉर्डर पार करके अपने इलाकों में चले गए थे।

उत्तराखंड के बाड़ाहोती में वास्तविक नियंत्रण रेखा में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों की घुसपैठ की खबरें पहले भी आ चुकी है। साल 2018 में ऐसी खबरें आई थीं, अगस्त महीने में तीन बार चीनी सैनिकों को आईटीबीपी की चौकी के पास देखा दया था। भारतीय सीमा में  घुस आए चीनी सैनिकों को जवानों के कड़े विरोध के चलते कदम पीछे खींचने पड़े थे।

Monday, September 27, 2021

हमने सैकड़ों बार देखा एलियंस का विमान, रिपोर्ट करने पर चली जाती है नौकरी', कई पायलट्स का दावा


20वीं शताब्दी में इंसानों ने अंतरिक्ष के बारे में विस्तार से रिसर्च शुरू की। साथ ही पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाओं की तलाश हुई, लेकिन अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है। कुछ रिसर्चर्स का मानना है कि एलियंस पृथ्वी पर आ चुके हैं, तो कुछ इसे इंसानी दिमाग की उपज बताते हैं। अब कुछ पायलट्स ने एलियंस को लेकर सनसनीखेज दावा किया है। (तस्वीरें-सांकेतिक)

  • डॉक्टर को दिखाने की सलाह

    डॉक्टर को दिखाने की सलाह

    हाल ही में कुछ वाणिज्यिक और सैन्य एविएटर ने दावा किया कि उन्होंने सैकड़ों बार एलियंस के विमान यानि UFO का देखा, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं की, क्योंकि इससे उनका करियर खतरे में पड़ जाएगा। डेली स्टार संडे को एक पायलट ने बताया कि एयरलाइन के उनके सहयोगी ने यूएफओ देखने की रिपोर्ट की थी। जिसके बाद उच्चाधिकारियों ने उन्हें डॉक्टर को दिखाने को कह दिया।

  • हर बार UFO मतलब एलियन नहीं

    हर बार UFO मतलब एलियन नहीं

    एक अन्य ने डेली स्टार संडे को बताया कि जब कोई यूएफओ कहता है तो हर कोई सोचता है कि वे एलियंस का जिक्र कर रहे हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है। अधिकांश पायलट अज्ञात हवाई घटनाओं के लिए इस शब्द (यूएफओ) का उपयोग करते हैं। जब भी पायलट कहेगा कि उसने यूएफओ देखा तो लोग कहेंगे कि वो नशे में है या फिर उसने ड्रग्स लिया है।

  • ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार

    ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार

    अब इन पायलट्स ने एक ऑनलाइन मंच तैयार किया है। जिसके एक सदस्य ने कहा कि कई बार उनके साथियों का सामना यूएफओ से हो चुका है। आमतौर पर पायलट उसका जिक्र ऑफ रिकॉर्ड साथियों से कर देते हैं, लेकिन कभी भी वो इसकी आधिकारिक शिकायत नहीं करते। कई बार आपके पास गवाह होते हैं, जिस वजह से आप बच जाते हैं। 37 हजार फीट पर अगर आपके ऑफिस की खिड़की हो, तो उसके कई फायदे होते हैं।

  • 30 साल पहले की घटना

    30 साल पहले की घटना

    एक अन्य ने बताया कि उन्होंने पहली बार 30 साल पहले यूएफओ देखा था। उस दौरान वो सिंगापुर से ब्रिस्बेन के लिए एक कार्गो जेट उड़ा रहे थे। स्थानीय समय के मुताबिक करीब 2 बजे थे, तभी उनके साथी ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से पूछा कि क्या आपको हमारे पास कोई विमान दिख रहा है, जिस पर जवाब आया नहीं। लंबे समय तक उनको कुछ चीज नजर आई, फिर वो गायब हो गई।

  • बादलों में अजीब सी चीज

    बादलों में अजीब सी चीज

    वहीं इस साल की शुरुआत में अमेरिकन एयरलाइंस के एक पायलट को ये कहते हुए रिकॉर्ड किया गया था कि उसने बादल में कुछ हिलता हुआ देखा है। पायलट ने ATC से पूछा कि क्या आपको हमारे पास कुछ उड़ती हुई चीज दिख रही। वो बेलनाकार वस्तु है, जो क्रूज मिसाइल की तरह दिख रही है। हालांकि बाद में ये मामला भी शांत हो गया।

महिलाओं के विरोध को दबाने के लिए तालिबान ने बनाई 'बुर्का रिजीम', लड़ाकों की पत्नियों को दे रहा ट्रेनिंग...

Taliban Afghanistan Women;s Protest :अफ़गानिस्तान में तालिबान के कब्जा करने के बाद से उसका महिलाओं के प्रति रवैया साफ है. तालिबान अपनी ओर से हमेशा से यह संकेत देना चाहता है कि वह महिलाओं को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो रही है. अफगानिस्तान से आने वाली मीडिया रिपोर्ट और तस्वीरों को देखकर तालिबान के सारे दावे खोखले नजर आते हैं. शायद यही कारण है कि अब अपना निशान की महिलाओं को मौत का डर नहीं रहा. इसलिए महिलाएं खुलकर तालिबानी लड़ाकों के सामने बेखौफ प्रदर्शन कर रही हैं. ऐसे में तालिबान की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही है. एक ओर उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो दूसरी ओर तालिबान को डर है कि इसे मुद्दा बनाकर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया जाने लगेगा. इससे बचने के लिए तालिबान ने एक नई युक्ति निकाली है.

Taliban Afghanistan Women;s Protest :

तालिबान महिला विंग की स्थापन : तालिबान ने कुछ महिलाओं को लेकर एक महिला विंग की स्थापना की है. इसका नाम तालिबान ने बुर्का रिजीम दिया है. जानकारी के अनुसार जिन महिलाओं को इसमें स्थान दिया गया है वह तालिबान लड़ाकों की पत्नियां, बहने और बेटियां ही हैं. इनमें से 40 ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने भारत, चीन, ब्रिटेन और ईरान में शिक्षा प्राप्त की हुई है. तालिबान चाहता है कि ये महिलाएं विरोध करने वाली महिलाओं को समझाएं की शरीयत के हिसाब से चलना अल्लाह को पसंद है. बताया गया है कि यह महिलाएं सीधे तौर पर इंटीरियर मिनिस्टर सिराजुद्दीन हक्कानी और टॉप तालिबान लीडरशिप को रिपोर्ट करेंगी.

दी जा रही है विशेष ट्रेनिंग : जानकारी मिली है कि महिलाओं को विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है.पहले जत्थे में 100 ऐसी महिलाओं को कंदधार और कुनार प्रांत में 15 दिनों की ट्रेनिंग दी गई थी. तालिबान इन महिलाओं की आगे की ट्रेनिंग के लिए टर्की और पाकिस्तान से भी बात कर रहा है. बताया गया है कि तालिबान के एक बार फिर से सत्ता में आने के पीछे इन महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है. यह जासूस नेटवर्क की तरह काम करती है और तालिबानी लड़ाकों की तरह कुछ भी करने को तैयार होती हैं. तालिबान आप इन महिलाओं की मदद से महिलाओं के विरोध को दबाना चाह रहा है.

तालिबान ने अलापा कश्मीर राग, दोस्त पाकिस्तान की जमकर तारीफ की


नई दिल्ली। अफगानिस्तान में ताकत के दम पर दोबारा अपनी सत्ता स्थापित करने वाला तालिबान अपनी सरकार बना चुका है। इसके साथ ही तालिबान ने अपने कानून लगाने शुरू कर दिए हैं। चीन और पाकिस्तान ऐसे देश हैं जो तालिबान को समर्थन करते रहे हैं। अभी कुछ समय पहले ही पाकिस्तान की ओर से अंतराष्ट्रीय मंच पर तालिबान को सहयोग देने के लिए बात कही गई थी जिसके बाद अब पाकिस्तान को लेकर तालिबान का प्रेम जाग गया है। एक इंटरव्यू में अफगानिस्तान के डिप्टी इंफॉर्मेशन मिनिस्टर और तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने पाकिस्तान की सराहना की है। मुजाहिद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अफगानिस्तान का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान की तारीफ के पुल बांधे। इस दौरान अफगानिस्तान ने भारत को लेकर भी ऐसा बयान दिया जिससे देश की उम्मीदों को झटका लगा सकता है।

दरअसल, एक इंटरव्यू के दौरान जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान मुखर रहा है। हमेशा से ही पाक अंतरराष्ट्रीय ताकतों से अपील करता आया है कि वे अफगानिस्तान के साथ जुड़ें। जबीहुल्लाह ने कहा कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है और अफगानिस्तान को लेकर जो नजरिया पाकिस्तान का रहा है, उसके लिए हम आभारी हैं। जबीहुल्लाह ने उम्मीद जताते हुए कहा कि हमें ये यकीन है कि हमारे पड़ोसी देश अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अफगानिस्तान को समर्थन देना इसी प्रकार जारी रखेंगे।

Imran khan

कश्मीर को लेकर भी दिया बयान

जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कश्मीर को लेकर भी बयान दिया। तालिबान ने पहले तो कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया लेकिन आगे ये भी कहा कि कश्मीर के पीड़ित मुस्लिमों के लिए तालिबान आवाज उठाना जारी रखेगा। मुजाहिद ने कहा कि पूरी दुनिया में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां मुसलमानों के साथ गलत तरीके से व्यवहार किया जा रहा है चाहे वो फिलीस्तीन हो, कश्मीर हो या म्यांमार हो। ये चिंताजनक है और हम उसके खिलाफ हैं। मुजाहिद ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की भी आलोचना की और कहा कि अफगान सरकार दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पीड़ित हो रहे मुस्लिमों को राजनयिक और राजनीतिक मदद प्रदान करना जारी रखेगी।

Saturday, September 25, 2021

पीएम मोदी की हुंकार, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान को लताड़, अफगानिस्तान पर चिंता


 भारत के प्रधानंमत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई है और वैश्विक समुदाय से पूछा है कि आतंकवादियों को बढ़ावा देने वाले देशों के खिलाफ हमें कड़ी कार्रवाई करनी ही होगी। पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में साफ शब्दों में कहा कि कुछ देश सिर्फ कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ा रहे हैं और उन्हें रोकना ही होगा।

  • लोकतंत्र से भाषण की शुरूआत

    लोकतंत्र से भाषण की शुरूआत

    पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि, भारत में हमेशा लोकतंत्र का फूल खिलता रहा है और पिछले 20 सालों से भारतीय समाज की सेवा करते हुए मुझे महसूस हुआ है कि लोकतांत्रिक तरीकों से ही सरकार चलाई जा सकती है। पीएम मोदी ने कहा कि, भारत ने स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश किया। हमारी विविधता हमारे मजबूत लोकतंत्र की पहचान है। पीएम मोदी ने कहा कि, पिछले 1.5 वर्षों में पूरी दुनिया 100 सालों में सबसे खराब महामारी का सामना कर रही है, मैं उन पीड़ितों को श्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने इस घातक महामारी में अपनी जान गंवाई है और मैं उनके परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं।

  • सबका साथ सबका विकास

    सबका साथ सबका विकास

    संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि विकास सर्व-समावेशी, सार्वभौमिक और सभी का पोषण करने वाला होना चाहिए। पीएम मोदी ने कोरोना महामारी के दौरान विश्व में भारत की उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि अगर भारत का विकास होगा, तभी दुनिया का विकास हो पाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि, 'जब भारत बढ़ता है, तो दुनिया बढ़ती है। जब भारत सुधार करता है, तो दुनिया बदल जाती है।'

  • कोरोना वैक्सीन पर बोले पीएम मोदी

    कोरोना वैक्सीन पर बोले पीएम मोदी

    पीएम मोदी ने कहा कि अक्टूबर महीने से भारत एक बार फिर से विश्व के देशों में वैक्सीन की सप्लाई की फिर से शुरूआत करने जा रहा है। पीएम मोदी के इस ऐलान के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में मौजूद तमाम देशों के प्रतिनिधियों ने तालियां बजाकर इसका स्वागत किया है। पीएम मोदी ने कोविड -19 वैक्सीन निर्माताओं से भारत में आकर अपनी वैक्सीन बनाने का आह्वान किया है।

  • पाकिस्तान को लताड़

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76 वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि ''ये सुनिश्चित किया जाना बहुत ज़रूरी है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलों के लिए न हो। पीएम मोदी ने कहा कि, हमें इस बात के लिए भी सतर्क रहना होगा अफगानिस्तान की नाजुक स्थितियों का इस्तेमाल कोई देश अपने स्वार्थ के लिए एक टूल की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश न करे।पीएम मोदी ने पाकिस्तान को लेकर दुनिया को आगाह करते हुए कहा कि, ''प्रतिगामी सोच के साथ, जो देश आतंकवाद का राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें ये समझना होगा कि आतंकवाद, उनके लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है''। पीएम मोदी ने कहा कि, ''हमने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा हरित हाइड्रोजन हब बनाने पर भी काम शुरू कर दिया है। हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के प्रति जवाबदेह हैं। आज दुनिया प्रतिगामी सोच और उग्रवाद के बढ़ते खतरे का सामना कर रही है। ऐसे में पूरे विश्व को विज्ञान आधारित, तर्कसंगत और प्रगतिशील सोच को विकास का आधार बनाना चाहिए। विज्ञान आधारित दृष्टिकोण को मजबूत करने के लिए भारत अनुभव आधारित शिक्षा को बढ़ावा दे रहा है''

मोदी-बाइडेन मुलाकात के बाद दोनों देशों ने तालिबान को क्या संदेश दिया है?


मोदी-बाइडेन मुलाकात के बाद दोनों देशों ने तालिबान को क्या संदेश दिया है?
पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन की बैठक के बाद दोनों देशों ने तालिबान को कड़ा संदेश भेजा है. (दूसरी फोटो में है तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन)

पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन की बैठक के बाद दोनों देशों ने तालिबान को कड़ा संदेश भेजा है. भारत और अमेरिका ने संयुक्त बयान में तालिबान से कहा है कि तालिबान महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यक समूहों सहित सभी अफगानों के मानवाधिकारों का सम्मान करे. दोनों देशों ने अफगानिस्तान के नए शासकों से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है अफगानिस्तान की धरती का किसी देश को धमकाने, हमला करने या आतंकवादियों को पनाह और प्रशिक्षण देने के लिए फिर से इस्तेमाल न हो सके.

और क्या कहा गया है तालिबान को लेकर?

संयुक्त बयान के मुताबिक दोनों नेताओं ने संकल्प किया कि तालिबान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNACC) के प्रस्ताव 2593 (2021) का पालन करना चाहिए.यह प्रस्ताव अगस्त में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भारत की अध्यक्षता के दौरान मंजूर किया गया था. बयान में कहा गया कि राष्ट्रपति बाइडेन और प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी प्रतिबद्धताओं को भी पूरा करने के लिए कहा है. इसमें अफगानों और सभी विदेशी नागरिकों का अफगानिस्तान से सुरक्षित और व्यवस्थित प्रस्थान, महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यक समूहों के सदस्यों सहित सभी अफगानों के मानवाधिकारों का सम्मान करना शामिल है.

26/11 के मुंबई हमले पर क्या कहा गया है?

भारत और अमेरिका ने सीमा पार आतंकवाद की निंदा की है. 26/11 के मुंबई हमलों के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का आह्वान किया है. कहा है कि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित समूहों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करेंगे. संयुक्त बयान में कहा गया है कि अमेरिका और भारत वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई में एक साथ खड़े हैं. संयुक्त बयान के मुताबिक, दोनों नेताओं ने इस बात की पुष्टि की कि अमेरिका और भारत ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव’ 1267 प्रतिबंध समिति द्वारा प्रतिबंधित समूहों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करेंगे.

पाकिस्तान स्थित कट्टरपंथी मौलाना हाफिज सईद का संगठन जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख संगठन है, जो 2008 के मुंबई हमले के लिए जिम्मेदार रहा है. इस हमले में छह अमेरिकी सहित 166 लोग मारे गए थे.

सईद संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी है. उस पर अमेरिका ने एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा है. उसे पिछले साल 17 जुलाई को आतंकवाद के वित्तपोषण के मामलों में गिरफ्तार किया गया था. जमात उद दावा का प्रमुख (70) लाहौर की उच्च सुरक्षा वाली कोट लखपत जेल में बंद है.

भारत ने बार-बार पाकिस्तान से आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ विश्वसनीय, पुष्ट और अपरिवर्तनीय कार्रवाई करने और 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का आह्वान किया है.

पीएम मोदी और जो बाइडेन की भारतीय समयानुसार शुक्रवार देर रात व्‍हाइट हाउस में मुलाकात हुई थी.  अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि मुझे विश्वास है अमेरिका-भारत संबंध कई वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि 2006 में मैंने कहा था कि 2020 तक भारत-अमेरिका दुनिया के सबसे करीबी देश होंगे. उन्होंने यह कहा कि जलवायु परिवर्तन और क्वॉड साझेदारों सहित हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता उनकी बातचीत का मुख्य एजेंडा है. इसके साथ ही बाइडन ने कहा कि अमेरिका-भारत संबंध दुनिया की ‘भयंकर’ चुनौतियों को हल करने की ताक़त रखते हैं.

भारत के आदिवासियों को हिंदुओं से अलग करने की साजिश


Tribal

आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म श्रेणी की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन के दौरान, बिहार के एक आदिवासी कार्यकर्ता महेंद्र ध्रुव ने कहा कि "यदि आप 1871 से 1931 तक ब्रिटिश काल के सभी जनगणना के आंकड़ों को देखें, तो जनजातियों को एक विकल्प के रूप में 'आदिवासी' चुनने का प्रावधान था। आजादी के बाद, सरकार ने इसे हटा दिया, ताकि जनजातियों को 'हिंदू' या 'अन्य' धर्मों के अनुयायी के रूप में गिना जा सके। वर्तमान समय के अधिकांश आदिवासी कार्यकर्ता 'आदिवासी' खंड के तहत एक अलग धर्म श्रेणी की अपनी मांग को सही ठहराने के लिए इस तर्क का उपयोग करते हैं। तो, अंग्रेजों द्वारा भारत में ऑस्ट्रेलियाई शब्दावली शुरू करने के पीछे की सच्चाई क्या है?

'आदिवासी' शब्द पर विचार करने से पहले लार्ड मैकाले का उल्लेख यहाँ अवश्य करना चाहिए। मैकाले को भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की शुरूआत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है, जिससे क्षेत्रीय संस्कृति / पाठ्यचर्या पर अंग्रेजी संस्कृति से संबंधित किसी भी चीज को श्रेष्ठता मिलती है। उनके तर्क 1835 में 'मैकाले के मिनट्स' के रूप में प्रकाशित हुए थे। इससे पारंपरिक और प्राचीन भारतीय शिक्षा और व्यावसायिक प्रणालियों और विज्ञानों का व्यवस्थित रूप से सफाया हो गया। 

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, हिंदुओं और मुसलमानों ने असाधारण एकता दिखाई जिससे अंग्रेजों को एहसास हुआ कि वे शांति से शासन नहीं कर सकते जब तक कि भारतीयों के बीच विभाजन न हो। सांप्रदायिक दंगे भड़काकर वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने में सफल रहे। अगली बड़ी चुनौती हिंदुओं को बांटने की थी। इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, अंग्रेजों ने 'आदिवासी' शब्द की शुरुआत करके आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच दरार पैदा करने का विचार रखा। 

उन्होंने आदिवासियों को 'आदिवासी' के रूप में वर्गीकृत करके दो लक्ष्यों को लक्षित किया। सबसे पहले, उन्होंने आदिवासियों को यह विश्वास दिलाया कि वे एक अलग ब्लॉक हैं और उनकी अलग पहचान है और दूसरा, उन्होंने आदिवासियों के बीच बड़े पैमाने पर धर्मांतरण शुरू किया, जो बड़े गैर-आदिवासी जनता से अलग होने के बाद एक आसान शिकार थे। झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूरे उत्तर-पूर्व आदि के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण उपरोक्त सिद्धांत की गवाही देता है।

पीएल 480 के दिनों से भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। अब, कई दक्षिण एशियाई देश नेतृत्व के लिए भारत की ओर देखते हैं। एक परमाणु शक्ति के रूप में, भारत तेजी से विकास कर रहा है और उम्मीद की जाती है कि वह थोड़े समय के भीतर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस आदि जैसे विकसित देशों के बराबर आ जाएगा। पश्चिमी शक्तियों ने महसूस किया है कि विकास की इस तेज गति को तभी रोका जा सकता है जब भारत में आंतरिक अशांति पैदा हो। आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म संहिता का मुद्दा उठाने वाले सीधे पश्चिमी शक्तियों के हाथों में खेल रहे हैं। 

एक अलग आदिवासी धर्म पश्चिमी शक्तियों को आदिवासियों को बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म में रूपांतरण करने का मौका प्रदान करने में मदद करेगा। यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि लगभग पूरे पूर्वोत्तर भारत और झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि के आदिवासियों का एक बड़ा हिस्सा ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया है। इन क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव का उपयोग करके, पश्चिमी शक्तियाँ भारत को आंतरिक रूप से अस्थिर करने का प्रयास कर सकती हैं और इस तरह इसकी प्रगति के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो मिशनरियों और उनके पश्चिमी आकाओं की नजर आदिवासी इलाकों की विशाल खनिज संपदा पर भी पड़ी है।

रामायण जैसे महाकाव्य ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं जहां आदिवासियों ने हिंदू देवी-देवताओं को अपना कर्तव्य निभाने में मदद की है। शबरी के बेर , केवट का नदी पार करते समय भगवान राम को अपनी सेवाएं देना आदि अधिकांश भारतीयों को ज्ञात है । रामलीला देश भर के कई आदिवासी क्षेत्रों में की जाती है। आदिवासियों को सदियों से हमेशा हिंदू धर्म का हिस्सा माना जाता रहा है। आदिवासियों के साथ-साथ सनातनियों में प्रकृति पूजा, गोत्र प्रणाली आदि आम हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां भील और गोंड आदिवासी शासकों ने सनातनी देवताओं के लिए मंदिरों का निर्माण किया। भील जनजातियों में से कुछ को राजपूत माना जाता है।

अगर भारत को अमेरिका, चीन, पश्चिमी यूरोपीय देशों जैसे देशों से आगे निकलना है तो उसे एकजुट रहने और अपनी सारी ऊर्जा विकास के मोर्चे पर लगाने की जरूरत है। आदिवासियों के लिए अलग धर्म संहिता जैसे मुद्दे देश को भीतर से ही कमजोर करेंगे। जो लोग जटिलता को नहीं समझते हैं, उनके लिए भारत में 100 जनजातियाँ हैं। धर्मों को जाति जनगणना के 1-6 से कोड (हिंदू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म) के आधार पर किया जाता है। कल्पना कीजिए कि प्रत्येक जनजाति को एक अलग कोड दिया जाए तो इस प्रक्रिया को जटिल बनाने के अलावा आदिवासी कार्यकर्ता और क्या हासिल करेंगे? 

यदि कोई जनजातीय कार्यकर्ताओं द्वारा आदिवासियों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग पर विचार करता है, तो इसका एक संभावित प्रभाव यह हो सकता है कि वे कई एसटी लाभों को खो देंगे जो वर्तमान में उनके समग्र विकास और सशक्तिकरण में उनकी मदद कर रहे हैं।

4 लोगों को मार कर लाश बीच चौराहे पर टाँग दी: तालिबान ने शुरू किया 'कुरान से सज़ा'


तालिबान क्रूरता
तालिबान ने युवक की डेड बॉडी को बीच चौराहे टाँग दिया।

तालिबान (Taliban) के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) के हालात अब तेजी से बदल रहे हैं। तालिबान ने शरिया कानूनों के तहत लोगों का बर्बर सजा देना भी शुरू कर दिया है। ताजा तस्वीर पश्चिमी अफगानिस्तान के हेरात शहर के मुख्य चौक की है, जहाँ एक शख्स को तालिबान ने मारकर सार्वजनिक तौर पर क्रेन से लटका दिया है। इस घटना का वीडियो भी सामने आया है। 

इसे टोलो न्यूज की पत्रकार जहरा रहीमी ने ट्वीट करते हुए लिखा, “अत्याचार वापस आ गया है। तालिबान ने अफगानिस्तान के पश्चिम में हेरात शहर में एक व्यापारी के अपहरण के आरोप में चार लोगों को लटका दिया।

इसे अफगानिस्तान के पत्रकार हिजबुल्लाह खान ने भी ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा, “तालिबान ने शहरों के अंदर सार्वजनिक तौर पर सजा-ए-मौत देना शुरू कर दिया है। ये हेरात का मामला है।”

चौक के किनारे एक फार्मेसी चलाने वाले वज़ीर अहमद सेद्दीकी ने द एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि चार शवों को चौक पर लाया गया और तीन शवों को शहर के दूसरे स्क्वायर पर टाँगने के लिए ले जाया गया है। सिद्दीकी ने कहा कि तालिबान ने चौक पर घोषणा की कि चारों को अपहरण में शामिल पाया गया था और पुलिस ने उन्हें मार दिया। हालाँकि उनकी बातों से यह स्पष्ट नहीं था कि चारों पुलिस के साथ हुए गोलाबारी में मारे गए या उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्हें मार डाला गया।

तालिबान के संस्थापक मुल्ला नूरुद्दीन तराबी ने इसी हफ्ते धमकी दी थी कि अफगानिस्तान में उसके संगठन का शासन आने के बाद से चोरों के लिए अंग-भंग की सज़ा फिर से वापस लाई जा सकती है। एक आँख और एक पाँव वाले तालिबान के संस्थापक ने कहा कि चोरों का हाथ काटने की सज़ा वापस आएगी, लेकिन हो सकता है कि ऐसी कार्रवाई अब सार्वजनिक रूप से नहीं की जाए। साथ ही उसने तालिबान द्वारा मचाए गए कत्लेआम का भी बचाव किया।

बता दें कि तालिबान अक्सर महिलाओं को कोड़े मारने से लेकर कथित अपराधियों पर पत्थरबाजी तक, इस तरह की कार्रवाइयों को सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने अंजाम देता रहा है। यहाँ तक कि मौत की सज़ा भी लोगों के सामने ही दी जाती है। मुल्ला नूरुद्दीन तराबी ने दुनिया को तालिबान के कार्यों में हस्तक्षेप करने पर भुगतने की भी धमकी दी और कहा कि सजा शरीयत व कुरान के हिसाब से होगी। पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पाई थी, तब नूरुद्दीन ही उस सरकार का सर्वेसर्वा था।

इससे पहले तालिबान के क्रूरता का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। वीडियो में दो शख्स कोड़े बरसा रहे थे और महिला दर्द से चीख रही थी। वीडियो में देखा गया कि तालिबानी अफगान महिला पर कोड़े बरसा रहे हैं और वह दर्द से चीख रही है। वीडियो में एक गाड़ी और आसपास कुछ लोग खड़े थे। अभी तक ऐसे कई वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए जा चुके हैं जो तालिबान के अत्याचारों का दावा करते हैं। वहीं प्रदर्शनकारियों पर तालिबान को गोली बरसाते हुए भी देखा जा चुका है।

पीएम मोदी से, बोले बाइडेन-सुरक्षा परिषद ,और NSG में ,भारत के प्रवेश का समर्थन अमेरिका करता रहेगा

पीएम मोदी से, बोले बाइडेन-सुरक्षा परिषद ,और NSG में ,भारत के प्रवेश का समर्थन ,करता रहेगा

पीएम मोदी की जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद उनके साथ यह पहली बैठक थी.व्हाइट हाउस में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक हुई थी. साझा बयान के मुताबिक, अमेरिका और भारत वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त जंग में एक साथ खड़े हैं.साथ में आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कोरोना, क्वॉड समेत तमाम मुद्दों पर लंबी चर्चा हुई.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह एनएसजी (NSG) में भारत के शामिल होने के प्रति अपने देश का समर्थन दोहराया. क्वॉड बैठक में अफगानिस्तान में तालिबान के समर्थन को लेकर पाकिस्तान की कड़ी निगरानी की बात भी कही गई है.

भारत और अमेरिका ने सीमापार आतंकवाद की भी एक सुर में निंदा की है. साथ ही मुंबई हमलों के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का आह्वान किया. दोनों नेताओं की ओर से जारी साझा बयान में कहा गया है कि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित समूहों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे.

दोनों नेताओं ने कहा कि अमेरिका और भारत यूएन सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 प्रतिबंध समिति में प्रतिबंधित समूहों समेत सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे. दोनों नेताओं ने किसी भी रूप में आतंकवादियों के छद्म इस्तेमाल की निंदा की और आतंकवादी समूहों को किसी भी तरह की सैन्य, वित्तीय सहायता को रोकने की अहमियत पर बल दिया.

भारत ने बार-बार पाकिस्तान से आतंकवादी ढांचे के खिलाफ ठोस  कार्रवाई करने और 26/11 के मुंबई हमलों के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने को कहा है. सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को दोहराते हुए एक प्रस्ताव को स्वीकृत किया. इसके अनुसार नामित व्यक्तियों और संस्थाओं को शामिल किया गया है और तालिबान की प्रासंगिक प्रतिबद्धताओं का उल्लेख किया गया है.

पाकिस्तान का 84%मुसलमान शरीयत के पक्ष में:प्यू रिसर्च सेन्टर


धार्मिक अनुष्ठानों में फेथ चल सकता है मगर राजनीति में नहीं। इसमें घालमेल के कारण ही खुद इस्लामी समाज सदैव हिंसाग्रस्त रहे हैं। वास्तव में आम मुसलमानों को भड़का कर राजनीतिक इस्लाम का दावा बुलंद रखा जाता है।

मुल्लाओं को छोड़ हर वर्ग के लोग हजारों की संख्या में अफगानिस्तान से भागने के लिए बदहवास हैं। वे सभी मुस्लिम ही हैं। वे तालिबान के क्रूर कानूनों से आजादी चाहते हैं, लेकिन याद रहे कि तालिबान के सभी कानून शरीयत ही हैं। यानी वे इस्लाम को ही पूर्णत: लागू कर रहे हैं। यही उन्होंने अपने पिछले शासनकाल में किया था। तब या अब, दुनिया के किसी इस्लामी संस्थान, इमाम आदि ने उनके काम को गैर-इस्लामी नहीं बताया, बल्कि भारत के बड़े मौलानाओं ने उस पर सगर्व बयान दिए कि तालिबान ही एकमात्र शुद्ध इस्लामी शासन है। यह प्रकरण इसका नवीनतम प्रमाण है कि इस्लामोफोबिया झूठा मुहावरा है। लोगों का इस्लाम से भय वास्तविक है। न केवल गैर-मुसलमानों, बल्कि स्वयं मुसलमानों में भी। इसका एक प्रामाणिक उदाहरण पाकिस्तान भी है।

कुछ समय पहले प्यू रिसर्च सेंटर ने पाकिस्तान में एक सर्वेक्षण किया था। पता चला कि वहां 84 प्रतिशत मुसलमान शरीयत के पक्ष में हैं, पर जो पार्टयिां शरीयत लागू करना चाहती हैं, उन्हें पांच-सात प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिलते। अर्थात आम मुसलमान शरीयत के पूरे अर्थ से अनजान हैं। इसीलिए जब खालिस इस्लामी पार्टयिां शरीयत बताती हैं तो उन्हें कट्टरपंथी कहकर अधिकांश पाकिस्तानी दूर रहते हैं। उस सर्वे में मात्र नौ प्रतिशत पाकिस्तानी लोग तालिबान/ इस्लामिक स्टेट के समर्थक मिले। कुल 72 प्रतिशत पाकिस्तानी लोग तालिबान विरोधी मिले। यही स्थिति इंडोनेशिया में दिखी, जहां 72 प्रतिशत लोग शरीयत के पक्षधर हैं, मगर केवल चार प्रतिशत ने इस्लामिक स्टेट का समर्थन किया। यही हाल ईरान, तुर्की, सीरिया, मिस्र आदि मुस्लिम देशों का है।

वास्तव में आम मुसलमानों को भड़का कर राजनीतिक इस्लाम का दावा बुलंद रखा जाता है। भारत-पाकिस्तान इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहां निरीह हिंदुओं का संहार होता रहा है, फिर भी मुसलमानों को हिंदुओं के विरुद्ध शिकायतों से भरा जाता है। इसकी बड़ी वजह वह अज्ञान है, जिसमें आम हिंदू-मुस्लिम डूबे हुए हैं। पाकिस्तानी लेखक हैरिस सुल्तान की पुस्तक ‘द कर्स आफ गाड’. में इसके मार्मिक विवरण हैं। दुर्भाग्यवश इतनी बड़ी विडंबना पर हमारे सत्ताधारियों, बुद्धिजीवियों ने आंखें मूंद रखी हैं। जबकि इसका उपाय नितांत शांतिपूर्ण है और उससे सबको राहत मिलेगी। अफगानिस्तान के नजारे ने भी यही दिखाया है। इस्लाम के पक्के समर्थकों को तालिबान सी ही सरकार चुननी होगी, लेकिन आम मुसलमान, विशेषकर गैर-अरब मुसलमान यह नहीं जानते। मौलाना वर्ग उन्हें आधा-अधूरा इस्लामी सिद्धांत और झूठा इतिहास-वर्तमान बताकर अपने कब्जे में रखता है। उनमें शिकायत, नाराजगी और हिंसा भरता रहता है। यह सब इस्लामी राजनीति के लिए पूंजी की तरह इस्तेमाल होता है।

दूसरी ओर इस्लाम से अनजान गैर-मुस्लिम उन शिकायतों के दबाव में तथा भ्रमवश उन्हें विशेष सुविधाएं देते जाते हैं। इस तरह अंतत: अपनी हानि का प्रबंध करते हैं। यह अनेक लोकतांत्रिक देशों में चल रहा है। राष्ट्रीय कानूनों को धता बताकर, छल-प्रपंच से शरीयत लागू की जाती है। हिंसा, शिकायत और छल की तकनीकों से दबदबा बढ़ाया जाता है। यह घटनाक्रम गत चार दशकों में तेज होता गया। इसी की प्रतिक्रिया से दुनिया में इस्लामोफोबिया बना है।

दुनिया में तीन किस्म के मुसलमान हैं: जिहादी, बेपरवाह और मानवतावादी। सबसे अधिक बेपरवाह हैं, जो इस्लाम के समर्थक हैं, मगर उसकी हानिकारक बातों से काफी-कुछ अनजान हैं। मानवतावादी/सेक्युलर मुसलमान बहुत कम हैं। वे राजनीतिक इस्लाम का सच जानकर उसे खारिज करते हैं। इनमें कई लेखक, कलाकार आदि हैं। इसलिए बेपरवाह-अनजान लोगों को प्रामाणिक इस्लाम बताया जाए, ताकि पक्के इस्लामियों, तालिबानियों से बहस हो। तभी शरीयत को खारिज कर मिल-जुलकर रहने का माहौल बनेगा। वफा सुलतान, तसलीमा नसरीन आदि ने इसी विमर्श का आग्रह किया है। तालिबान समर्थकों से निपटने का उपाय यह है कि मूल इस्लामी किताबें खुद पढ़ें। वे इंटरनेट पर मुफ्त उपलब्ध हैं। उनकी परख वास्तविक घटनाओं, इस्लामी मांगों और अपने विवेक से करें।

कोई भी सामाजिक सिद्धांत तभी उपयुक्त है, जिसे किसी समान मानवीय कसौटी पर कस सकें। बिना कसौटी के महज ‘फेथ’ वाली बातों को सच नहीं कहा जा सकता। इस्लाम के धार्मिक अनुष्ठान जैसे नमाज, रोजा, हज आदि कसौटी से मुक्त रह सकते हैं, लेकिन राजनीतिक इस्लाम, जैसे गैर-मुसलमानों या महिलाओं के प्रति व्यवहार, जिहाद, शरीयत के हुक्म, दुनिया के बारे में शिक्षा और इतिहास-इन सबको कसौटी पर परखना ही होगा। सच (ट्रुथ) और विश्वास (फेथ) दो अलग-अलग चीजें हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में फेथ चल सकता है, मगर राजनीति में नहीं। इसमें घालमेल के कारण ही खुद इस्लामी समाज सदैव हिंसा-ग्रस्त रहे हैं। इसी नाम पर मुसलमान दूसरे मुसलमान को मारते हैं।

अधिकांश खलीफा, इमाम और खुद प्रोफेट मुहम्मद के परिवार की हत्याएं मुसलमानों ने ही कीं। आज भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, नाइजारिया आदि देशों में वही हो रहा है। इसलिए दोष इस्लाम के राजनीतिक मतवाद में है, जिससे स्वयं मुस्लिम समाज भी त्रस्त है। चूंकि, इस्लामी मूल किताबों की सामग्री का बड़ा हिस्सा (लगभग 86 प्रतिशत) राजनीति ही है, इसलिए व्यवहारत: राजनीतिक इस्लाम ही इस्लाम का प्रतिनिधि रहा है। यह बातें धीरे-धीरे मुस्लिम समाज समेत पूरी दुनिया में साफ हो रही हैं। फलत: मानवतावादी मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है, जो शरीयत को सचेत रूप से खारिज करते हैं। सच्ची बातों की अपनी ताकत होती है, जिसके सामने बम-बंदूकें निष्फल होतीं हैं। इसीलिए एक इब्न वराक, एक रुश्दी, अली सिना या वफा सुलतान से तमाम मुस्लिम सत्ताएं परेशान हो जाती हैं। आखिर इन लेखकों ने कुछ शब्द ही तो लिखे, पर उनकी सच्चाई की आंच लाखों मदरसों पर हुकूमत करने वाले हजारों आलिम-उलेमा नहीं ङोल पाते।

यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे सच सामने आएगा, वैसे-वैसे राजनीतिक इस्लाम का प्रभाव सिकुड़ेगा। यह भी गौर किया जाना चाहिए कि बिना किसी धमकी, प्रचार या संस्थानों के दुनिया की असंख्य पुस्तकें स्वत: अपना प्रभाव रखती हैं। उन्हें मनवाने के लिए जबरदस्ती नहीं करनी पड़ती। वहीं अन्य मजहबी किताबों को जबरन अंतिम सच जैसा मनवाने के लिए अंतहीन हिंसा करनी होती है। खुद मुसलमानों पर भी।

QUAD की बैठक से पहले चीन ने उगला जहर, गलवान गाटी झड़प के दौरान भारत पर लगाया जमीन हड़पने का आरोप


चीन ने शुक्रवार को पिछले साल जून में गलवान घाटी संघर्ष के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया है, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे और चार चीनी सैनिक मारे गए थे। क्वाड की बैठक से पहले चीन ने भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा कि, नई दिल्ली ने सीमा संबंधी सभी समझौतों का उल्लंघन किया और चीनी क्षेत्र पर अतिक्रमण किया।

गलवान घाटी में हिंसक संघर्ष

गलवान घाटी में हिंसक संघर्ष

पिछले 16 महीने से भारत और चीन के सैनिक लगातार एलएसी पर तैनात हैं। 15 जून 2020 को गलवान घाटी में दोनों देश की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें दोनों देशों की सैनिकों ने लोहे के रॉ़ड और कांटेदार तार से एक दूसरे पर हमला किया था। इस हमले में 20 भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हो गये, जबकि चीन ने पहले चार सैनिकों के मारे जाने की बात कबूली थी और बाद में उसने एक और जवान के मारे जाने की बात को कबूल किया था। 1975 के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पहली बार हिंसक संघर्ष हुआ था और जवानों की मौत हुई थी। उस संघर्ष के बाद कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य वार्ता भी तनाव को पूरी तरह से हल करने में विफल रही है।

भारत पर अनर्गल आरोप

भारत पर अनर्गल आरोप

गलवान घाटी संघर्ष के बाद से चीन कई बार अपने बयान बदल चुका है, जबकि भारत एक स्टैंड पर कायम है। भारत ने बार-बार और लगातार चीन के आरोपों को खारिज कर दिया है कि भारतीय सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी के चीनी सीमा में गई थी। नई दिल्ली ने हमेशा सीमा प्रबंधन और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और शांति बनाए रखने के लिए एक जिम्मेदार दृष्टिकोण अपनाया है। हालांकि चीन भारत पर लगातार आरोप लगाता रहा है। भारतीय सेना के थिएटर कमांड में पुनर्गठन और चीन-भारत सीमा के प्रबंधन पर इसके प्रभाव पर एक सवाल के जवाब में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि, ''चीन और भारत के बीच शांति बनाए रखने के लिए सभी समझौते और संधियां और एलएसी के क्षेत्र में स्थिरता ने सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।''

चीन ने क्या कहा?

चीन ने क्या कहा?

एक बार फिर से भारत पर अनर्गल आरोप लगाते हुए चीन के झाओ लिजियन ने कहा कि, ''पिछले साल, गलवान घाटी की घटना हुई थी, क्योंकि भारत ने सभी हस्ताक्षरित समझौतों और संधियों का उल्लंघन किया और चीनी क्षेत्र पर अतिक्रमण किया, अवैध रूप से सीमा रेखा (एलएसी) को पार किया। हमें उम्मीद है कि भारत सभी हस्ताक्षरित समझौतों का पालन करेगा और ठोस कार्रवाई के साथ सीमा क्षेत्र में शांति स्थिरता बनाए रखेगा।'' आपको बता दें कि, सितंबर 2020 में, चीन ने कहा था कि वह एलएसी का पालन करता है, जो कि चीन-भारत की काल्पनिक सीमा है, जैसा कि प्रीमियर झोउ एनलाई द्वारा प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को 7 नवंबर, 1959 को एक पत्र में प्रस्तावित किया गया था, लेकिन भारत सरकार ने तभी से लगातार इस प्रस्ताव को खारिज कर रही है। इसे पहली बार 61 साल पहले बनाया गया था।

भारत का जवाब

चीन के बेबुनियाद आरोप पर भारत की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंद बागची ने कहा कि, ''हम ऐसे बयानों को खारिज करते हैं। पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ पिछले साल के घटनाक्रम के संबंध में हमारी स्थिति स्पष्ट और सुसंगत रही है''। भारत हमेशा से कहता आया है कि भारतीय सैनिक किसी भी तरफ से चीन की सीमा रेखा में नहीं गये थे, बल्कि चीन ने घुसपैठ करने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय सैनिकों ने नाकाम कर दिया।

केंद्र के नए कृषि कानून का दिखा असर, आवक कम हुई, मंडी शुल्क में भी आई भारी गिरावट


मेरठ (Meerut) . केंद्र सरकार (Central Government)के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध के बीच इसका असर अब दिखने लगा है. सरकार ने व्यापारियों को अधिक भंडारण की छूट दी है, वहीं किसानों को अपनी फसल मंडियों से बाहर कहीं पर भी बेचने का अधिकार दिया है. अब इसका असर धरातल पर नज़र आने लगा है. प्रदेश की मंडियों में कृषि उत्पाद की आवक और मंडी शुल्क में 50 प्रतिशत से भी अधिक गिरावट आई है. इसके चलते मध्यमवर्गीय व्यापारियों से लेकर किसानों तक की चिंता बढ़ गई है. मंडी समिति के कर्मचारियों को भी वेतन न मिलने का भय सताने लगा है. मंडी से जुड़े सूत्रों के अनुसार नए कानूनों का डर और आंदोलन के असर के साथ ही मौजूदा परिस्थितियों में कृषि उत्पादों की आवक और आय पर बड़ा असर पड़ रहा है. वहीं, मंडी से बाहर कृषि उत्पाद बेचने वाले किसानों को फसल का उचित दाम न मिलने की शिकायतें तो पहले से ही हैं. वहीं कुछ किसान और व्यापारी इसे नए कृषि कानूनों से जोड़ रहे हैं. उनका मानना है कि नए नियम कायदे मंडियों से जुड़े किसानों और व्यापार के अनुकूल नहीं हैं.

पश्चिमी यूपी के मेरठ (Meerut) मंडल की मेरठ (Meerut) मंडी समिति सहित 22 मंडियों से सरकार को वर्ष 2019-20 में लगभग 96 करोड़ रुपये मंडी शुल्क के रूप में मिले थे. जो अब वित्तीय वर्ष 2020-21 में घटकर 46 करोड़ रह गए हैं. कुछ व्यापारियों ने तो यहां तक आशंका जताई है कि इन हालात में मंडियों पर ताला लटक जाएगा. क्योंकि जिनता खर्च मंडी समितियों में स्टाफ के वेतन पर किया जा रहा है, मंडी शुल्क से उतनी आय नहीं हो रही है.

सूत्रों के अनुसार मंडी के कुछ व्यापारी मंडी के अंदर अपनी दुकान पर आने वाले कृषि उत्पाद की खरीद फरोख्त करने के बाद भी इस कारोबार को मंडी से बाहर दिखा रहे हैं. इसका सीधा असर मंडी समिति की आय पर पड़ रहा है. इस खेल पर अंकुश लगाना भी जरूरी है.

मंडी समिति के सचिव विजिन बालियान ने बताया कि मंडी में आवक गिरी है. मंडी शुल्क भी कम हुआ है क्योकि कुछ व्यापारियों ने अपने लाइसेंस सरेंडर करने के लिए आवेदन किए हैं. कई व्यापारी मंडी से बाहर व्यापार करने लगे हैं. वही व्यापार संघ मेरठ (Meerut) के अध्यक्ष नवीन गुप्ता के अनुसार नए कृषि कानूनों ने मंडी में कारोबार को समेट दिया है. ये कानून न किसान के हित में हैं और न व्यापारी के. किसान अपने हित की ही नहीं बल्कि व्यापारी हित की भी लड़ाई लड़ रहे हैं.

परम तत्व दर्शन