लखीमपुर कांड के बाद राजनीतिक पार्टियां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने लिये संभावनाएं तलशाने में जुटी है। चाहे सत्ता पक्ष भाजपा हो या फिर विपक्ष इस दौड में कोई किसी से पीछे नही रहना चाहता। घटना के बाद पिछले तीन-चार दिनों के घटनाक्रम को देखने से कम से कम तो यही संकेत मिलता है। पीडित परिवारों से मिलने को लेकर पहले लखनऊ में चला हाई वोल्टेज ड्रामा फिर योगी सरकार द्वारा दो राज्यों के मुख्यमंत्री को बैरंग लौटाने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को हिरासत तथा प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी और फिर पीडितों की सभी मांगों को मान लिया जाने के कदमों से राजनीतिक दलों के इरादें साफ जाहिर होते है।
पीडितों की सभी मांगे माने जाने के अगले ही दिन विपक्ष को लखीमपुर जाने की अनुमति दिया जाना किसी के गले नहीं उतर रहा है। राजनीतिक जानकार सवाल उठाते है कि अगर विपक्ष को जाने ही देना था तो फिर दो दिन पहले उसे लखनऊ में रोकना और हिरासत मे लेकर हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे की भला क्या जरूरत थी। इनका मानना है कि पक्ष और विपक्ष दोनों मामलें को जिन्दा रखकर विधानसभा चुनाव के लिये संभावनाएं तलाश रहे है। विदित हो कि किसानों समझौते के बाद मामले का समाधान होने के बाद विपक्ष के लखमीपुर जाने पर पर कोर्ट ने भी उंगली उठायी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि जब मामले का समाधान हो गया तो विपक्षी नेताओं को जाने का भला क्या औचित्य।
कुछ माह बाद ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा सरकार जहां विकास और कानून व्यवस्था के नाम पर फिर प्रचंड बहुमत लाने का दावा कर रही है वहीं विपक्ष कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं छोड़ रहा, जिस पर सरकार को घेरा जा सके। उन्नाव दुष्कर्म कांड, उभ्भा नरसंहार और हाथरस दुष्कर्म कांड को विपक्ष ने जोरशोर से उठाया। विपक्ष के बीच की इस प्रतिस्पर्धा में कभी सपा मुखिया अखिलेश यादव तो कभी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा आगे निकलती दिखीं।
विदित हो कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन को दिल्ली बार्डर से उत्तर प्रदेश के भीतर खींचने के जिस तरह से विपक्षी दलों के प्रयास चले, उससे इशारा साफ था कि जुगत इसे आगामी विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाने की है। 70 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाली ग्रामीण आबादी पर साढ़े चार वर्ष से नजरें जमाए चल रही योगी आदित्यनाथ सरकार ने खास तौर पर किसानों से संबंधों में मिठास घोलने के लिए हाल ही में गन्ना मूल्य बढ़ाया लेकिन लखीमपुर खीरी की सनसनीखेज घटना ने किसानों के मुद्दे को फिर गर्मा दिया।
लखीमपुर में हिंसा की घटना में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत के बाद योगी सरकार जहां विपक्ष को कोई मौका नहीं देना चाहती। बाजी अपने पक्ष में रखने को लिए सरकार ने किसानों की लगभग सभी मांगों को मानते हुए 45-45 लाख रुपये मुआवजा दिया था। मामला शांत होने के बाद सरकार ने राहत की सांश ली थी और वह मान बैठी थी कि लखमीपुर कांड में वह विपक्ष को पटखनी देने में सफल हो गई है। सब-कुछ ठीक होने के बाद दिल्ली से पत्ते सजाकर आए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक-एक करोड़ रुपये मुआवजे देकर सरकार के लिए फिर चुनौती बढ़ा दी है।
यह मुआवजा राहुल गांधी के साथ लखीमपुर पहुंचे दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की ओर से घोषित किया गया है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सहित दूसरी पार्टियां भी इस मुद्दे पर पीछे हटती नहीं दिख रही हैं। सपा ने भी सत्ता में आने पर एक-एक करोड की आर्थिक मदद तथा मकान देने का एलान करके नयी चला चल दी है।
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