Monday, October 31, 2022

आर-पार की लड़ाईं के मूड में रूस और यूक्रेन: प्रताप मिश्रा


पिछले आठ महीने से चल रहा रूस-यूक्रेन युद्ध पिछले दो दिनों से इतना भयंकर हो गया है कि लगता है दोनों आर-पार की मुद्रा में आ गए हैं। रूस यूक्रेन को सबक सिखाने के लिए युद्धक विमानों, मिसाइलों और टैंकों से प्राचंड हमले कर रहा है तो यूक्रेन अमेरिका की जासूसी सैटेलाइट की मदद से रूसी सैनिकों के ठिकानों पर बमबारी करके न सिर्प उन्हें मार ही रहा है साथ ही समुद्र में रूसी युद्ध पोतों को भी निशाना बना रहा है। रूस जल्दी से जल्दी कीव पर कब्जे की रणनीति बना रहा है तो यूक्रेन रूसी सैनिकों को इतनी क्षति पहुंचा रहा है कि रूस की चिन्ता इस बात को लेकर बढ़ गईं है कि जमीन पर लड़ने के लिए सैनिक कहां से लाए!

दरअसल यूक्रेन रूस के थल सैनिकों को मारकर ही कीव को बचा पाया है। यूक्रेन के सैनिकों ने रूस के वरिष्ठ जनरलों तक को मार डाला है। जबकि असंख्य सैनिकों को भी निशाना बनाया है। रूस ने तीन लाख सैनिकों को तीन महीने के अंदर ही भता किया, उन्हें ट्रेनिंग दिया और लड़ने के लिए यूक्रेन रवाना भी कर दिया। इसी से यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि यह सैनिक यूक्रेन के प्राशिक्षित सैनिकों से लड़ने में कितने सक्षम होंगे!

असल में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कोशिश थी कि रूसी सैनिकों के बजाय चेचन्या के कादिरफ की क्रूर सेना यक्रेन की सेना को तबाह कर देगी किन्तु चेचन लड़ाकों को यूक्रेन की टेरीटोरियल सेना ही ऐसा सबक सिखा रही है कि वह अपनी जान बचाएं या फिर रूस के सैनिकों की!

सच तो यह है कि रूस को लग रहा है कि युद्ध इसलिए लंबा खिच रहा है क्योंकि यूक्रेन के सैनिकों की मारक क्षमता अमेरिका व नाटो देशों की रणनीतिक एवं लाजिस्टिक सहायता के कारण न सिर्प तीव्र प्रातिरोधी हो गईं है बल्कि प्राचंड हमलावर भी हो गईं है। इसीलिए बीच-बीच में रूस परमाणु हमले की धमकी देता है किन्तु नाटो देशों के सुरक्षा विशेषज्ञ इस वास्तविकता को महसूस करते हैं कि पुतिन को इस बात का अनुमान जरूर होगा कि परमाणु युद्ध की नौबत आते ही नाटो देश एकजुट होकर मोर्चा संभाल लेंगे और युद्ध भी समाप्त हो जाएगा किन्तु रूस पूरी तरह नेस्तनाबूद हो जाएगा।

पुतिन ने नाटो की इस मौन चेतावनी की भयानक स्थिति की कल्पना करके ही अब कहना शुरू कर दिए हैं कि वह परमाणु युद्ध के पक्ष में नहीं हैं।

पुतिन को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गईं है कि नाटो अपनी रणनीति के मुताबिक रूस के लिए युद्ध बहुत महंगा बना देना चाहता है, इतना महंगा कि रूस को इसकी कीमत चुकाने में दशकों का समय लगे।

रूस युद्धक क्षमता में पहले ही महाशक्ति था किन्तु आर्थिक क्षेत्र में वह कमजोर रहा है। किन्तु आर्थिक प्रातिबंधों के कारण रूस की आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो गईं है जबकि युद्धक क्षमता का भी ह्रास ही हो रहा है। ऊर्जा विकल्प खोजने में लगे पािमी यूरोपीय देशों को सफलता मिलते ही नाटो के तेवर रूस के खिलाफ और कड़े होने वाले हैं।

अब सवाल है कि जब यूक्रेन को नाटो हारने नहीं देगा और रूस परमाणु हमला करके आत्मघाती पैसला कर नहीं सकता, तो युद्ध समाप्त वैसे होगा? इसका जवाब भी पुतिन को ही देना होगा जो यूक्रेन की धरती पर युद्ध लड़ने के बावजूद अपने सैनिक, टैंक और जहाज खो रहे हैं।

पुतिन के बारूदी विचारों के खिलाफ रूसी जनता में भी आक्रोश है। देखना यह है कि युद्ध की शुरुआत करने वाले पुतिन युद्ध को खत्म करने का तरीका खोजते हैं या फिर नाटो के देश ही यह काम करेंगे। 

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