संयुक्त राष्ट्र में चीन के शिनजियांग से जुड़े बहस प्रस्ताव पर मतदान न करने को लेकर हो रही सरकार की आलोचनाओं के बीच विशेषज्ञ इसे पड़ोसी को कश्मीर पर संदेश देने और अपने हितों की रक्षा करने वाली कूटनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
विदेश मामलों के जानकारों के मुताबिक, शिनजियांग में मानवाधिकार पर मतदान से भारत की दूरी बहुत स्वाभाविक है और वह इस मुद्दे के लिए दूसरा दृष्टिकोण अपना रहा है। इसके तहत चीन को संदेश दिया जा रहा है कि जैसे नई दिल्ली देश विशेष के लिए आए प्रस्ताव से खुद को दूर रख रही है, वैसा ही रुख पड़ोसी को कश्मीर मुद्दे पर अपनाना चाहिए।
आईडीएसए में एसोसिएट फेलो और चीन विषयों की जानकार एमएस प्रतिभा कहती हैं, भारतीय विदेश नीति के इतिहास को देखें तो उसने कई बार देश विशेष को निशाना बनाने वाले बहस प्रस्तावों पर मतदान से खुद को दूर रखा है। यह हमारी विदेश नीति का स्वाभाविक गुण है और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में चीन को लेकर भी नई दिल्ली ने ऐसा ही किया है। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि भारत चीन का समर्थन कर रहा है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन विभाग में प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने भारत की अनुपस्थिति को अपने हितों के तहत उठाया गया कदम करार दिया है। उन्होंने कहा, सरकार ने चीन को दर्शाया है कि वह भी कश्मीर के मामले में दखल देना बंद करे। 2019 व 2020 में ड्रैगन कश्मीर पर अनौपचारिक चर्चा का मुद्दा सुरक्षा परिषद में लेकर आया था, लेकिन वह खारिज हो गया था। भारत ने चीन को संदेश दिया है वह उसके आंतरिक मामलों से भी दूरी बनाकर रखे।
बता दें, शिनजियांग के उइगर मुस्लिमों पर यूएनएचआरसी में आया मसौदा प्रस्ताव खारिज हो गया। 47 सदस्यीय परिषद में 17 ने इसके पक्ष में तो 19 ने विपक्ष में मतदान किया और भारत, ब्राजील, मैक्सिको और यूक्रेन समेत 11 देश अनुपस्थित रहे। दिलचस्प बात यह रही कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में आने वाले सोमालिया जैसे देशों ने चर्चा के पक्ष में मतदान किया।
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