यशवंत सिन्हा ने कहा कि जिस तरह यूक्रेन और रूस के मामले में पूरी दुनिया तटस्थ रह गई, ठीक उसी तरह की स्थिति हो सकती है अगर भारत और चीन के बीच संघर्ष होता है.
नई दिल्ली: रूस (Russia) ने यूक्रेन (Ukraine) पर कब्जे के लिए हमला कर दिया. यूक्रेन में चल रहे युद्ध को 11 दिन हो गए हैं. पूरी दुनिया में इसके खिलाफ आवाज़ उठाई जा रही है. इस बीच पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने चीन को लेकर भारत को सतर्क रहने को कहा है. यशवंत सिन्हा ने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी अगर रूस के राष्ट्रपति पुतिन की तरह करें तो इस पर आश्चर्य न किया. चीन भारत के प्रति ऐसा कर सकता है, इसलिए सतर्क रहना होगा. यशवंत सिन्हा ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तुलना उस ड्राइवर से की है जो किसी दुर्घटना की चिंता किए बगैर फर्राटे से अपनी कार किसी चौराहे पर भी दौड़ा दे.
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने कहा कि भारत को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि अगर पाकिस्तान या चीन के साथ उसका संघर्ष होता है तो वह अकेला है और उसे स्वयं ही अपनी सुरक्षा करनी होगी. विभिन्न मुद्दों पर अकसर सरकार को घेरने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य मंचों पर मतदान से दूर रहने के भारत के फैसले से एक संदेश यह भी गया है कि वह ‘‘गलत काम में’’ रूस का साथ दे रहा है.
श्री सिन्हा ने न्यूज़ एजेंसी ‘भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में यह भी कहा कि अपनी सुरक्षा को लेकर रूस की चिंता वाजिब थी लेकिन युद्ध का उसका तरीका गलत और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विपरीत है. उनके मुताबिक, यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के साथ ही भारत को रूस से बात करनी चाहिए थी और वार्ता के जरिए मुद्दे का हल निकालने के लिए उसे दोनों देशों पर दबाव बना चाहिए था. उन्होंने कहा, ‘‘रूस से हमारी बहुत पुरानी दोस्ती है. वह हर मौके पर भारत के काम आया है. वह हमारा बहुत ही बहुमूल्य दोस्त है, इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन बहुत नजदीकी दोस्त भी अगर गलती करता है तो दोस्त के नाते हमारा हक बनता है कि हम उसको कहें कि भाई यह गलती मत करो.’’
यशवंत सिन्हा वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के सदस्य हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि अभी तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है कि भारत सरकार ने ऐसा कुछ किया है. संघर्ष शुरू होने के तुरंत बाद हमारे विदेश मंत्री को वहां जाना चाहिए था और कोशिश करनी चाहिए थी कि पुतिन की मोदी से बात कराएं लेकिन ऐसी कोई पहल भारत की ओर से नहीं हुई.’’ सिन्हा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य मंचों पर भारत मतदान से दूर रहा तथा इससे ऐसा लगता है जैसे गलत काम में भारत रूस का साथ दे रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘यह जो स्थिति है, इससे बचा जा सकता था.’’ यशवंत सिन्हा ने कहा कि उनका मानना है कि वह चाहे अमेरिका हो या यूरोप, पश्चिमी देशों का नेतृत्व कमजोर हो गया और कहीं न कहीं पुतिन को यह एहसास था कि वह अगर किसी तरह का ‘‘जोखिम भरा कदम’’ उठाएंगे तो ‘‘वेस्टर्न डेमोक्रेसीज’’ उनका मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं होंगी.
उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश तथा लद्दाख में सीमा विवाद बहुत पुराना है. वर्ष 2020 के जून महीने में लद्दाख की गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी और दोनों देशों के बीच फिलहाल गतिरोध को दूर करने के लिए सैन्य स्तरीय वार्ता जारी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पश्चिमी देशों की तरफ से यूक्रेन को उकसाया गया और उसे नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) में शामिल करने की बात कहकर वे रूस को घेरने की तैयारी कर रहे थे तथा इन्हीं सबसे चिंतित होकर रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया.
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मेरा यह कहना है कि रूस की चिंता सही थी लेकिन तरीका गलत हो गया. उनको (रूस) कोशिश करनी चाहिए थी कि बातचीत से रास्ता निकले. बातचीत से रास्ता निकालने में अगर दूसरे देशों की मदद उन्हें चाहिए थी तो वह भी लेनी चाहिए थी. जैसे अभी फ्रांस के राष्ट्रपति कोशिश कर रहे हैं. वह फ्रांस की सेवाओं का इस्तेमाल बातचीत के लिए कर सकता था. रूस, भारत की सेवाओं का इस्तेमाल भी कर सकता था. वह भारत से हस्तक्षेप करने को कह सकता था. वह भारत को कह सकता था कि वह इस दिशा में कोशिश करे ताकि रूस की सुरक्षा पर खतरा न हो.’’
सिन्हा ने कहा कि मौजूदा स्थिति में नाटो ने यूक्रेन को सैन्य मदद न देकर सही रास्ता पकड़ा है क्योंकि वह संघर्ष नहीं बढ़ाना चाहता. उन्होंने कहा, ‘‘सबकी चिंता यही है कि कहीं यह विश्वयुद्ध में तब्दील न हो जाए और विश्वयुद्ध होने का मतलब है परमाणु युद्ध. यह होता है तो और कितने लोग मारे जाएंगे, उसकी कोई गिनती नहीं होगी. इसलिए, पश्चिमी देश खासकर जिनका प्रभाव यूरोप में है, वे नहीं चाहते हैं कि संघर्ष इतना बढ़ जाए कि उनकी सेना को इसमें भाग लेना पड़े.’’
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