Sunday, July 19, 2020

कोरोना बना मौत का प्रतिरूप वैज्ञानिक और डॉक्टर भी नहीं रोक पा रहे


वैज्ञानिकों की शर्मनाक हार...


कोविड- 19 विश्व में भले ही चीन के एक शहर वुआन से निकलकर तबाही का एैसा तांडव कर रहा है जिसकी कल्पना शायद ही अविष्कार करने वाले बड़े-बड़े वैज्ञानिकों की भी नहीं रही होगी। वैज्ञानिकों ने तो यही सोचा था कि महामारी का वायरस है आया है, इसका कोई ना कोई 'वैक्सीन' निकाल लिया जायेगा और मानव जीवन को इस कोविड- 19 महामारी से निजात दिलाने में फिर एक बार उन्हीं वैज्ञानिकों की अहम भूमिका होगी जिन्होंने प्लेग, चैचक, डेंगू, चिकन गुनिया, बर्डफ्लू, स्वाईनफ्लू जैसे महामारी से निपटने में अपने तेज गति से 'फर्टाइल ब्रेन' का उपयोग किया है। परन्तु यह कैसा वायरस कोविड- 19 के रूप में प्रकट हुआ है जिसका इलाज ढंढने में पूरे विश्व भर के वैज्ञानिकों के पसीने छूट गये है। अमेरिका कह रहा है अंतिम स्टेज पर है कोरोना वैक्सीन ट्रायल की तैयारी, जल्द मिल सकती है, खुश खबरी। अमेरिका का दावा है पहले टेस्ट में सफल रहा उनका सुपर वापर लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप अपने देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या को कम नही कर पाये। दुनिया भर से खबरे हैं 13 वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के फेज में पहुंच चुके हैं। भारत में दो वैक्सीन का मानव ट्रायल शुरू हो गया है। स्वदेशी कोरोना वैक्सीन का तेजी से ट्रायल होने का दावा किया जा रहा है, कहा जा रहा है 14 अस्पतालों में 375 लोगों पर 2 ट्रायल और मंजूरी में 90 दिन लगेंगे। भारत में 7 फार्मा कंपनी कोरोना वैक्सीन पर काम कर रही है, जिसमें भारत बायोटेक एैसी पहली कंपनी हैं जिसे ड्रग कंट्रोल की ओर से इंसानों पर पहले और दूसरे चरण के वैक्सीन ट्रायल की मंजूरी मिली है। इसके अलावा जायसड कैडिला को भी मंजूरी मिल चुकी है, जो दावा कर रहे हैं ट्रायल शुरू है वालिंटियर्स को डोज दिये जा रहे हैं। इनका कहना है कि इस वैक्सीन को अहमदाबाद के वैक्सीन टेक्नोलॉजी सेन्टर में विकसित किया है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवधन के आत्म विश्वास को दाद देनी पड़ेगी, उन्होंने दावा किया है कि 'स्वदेशी कोरोना वैक्सीन' का ह्युमन ट्रायल शुरू हो गया है। कोविड- 19 के खिलाफ जंग अब निर्णायक दौर में है। माना डॉ. हर्षवधन साहब कि आप कोरोना से जंग जीतने के प्रति कठोर आत्म विश्वास का परिचय दे रहे हैं, लेकिन जरा विश्व भर के वैज्ञानिकों से यह तो पूछिये कि कोविड- 19 अभी 7 महीने का बच्चा है जब यह 9 महीने का होकर तांडव 100 गुना मचायेगा तब के लिये उनके पास क्या तैयारी है।  आज यही सवाल सबसे बड़ा है जब अदृश्य वायरस जिसे आप नंगी आंखों से देख नहीं सकते उसने पूरे विश्व को तहस-नहस करके अब हवा में भी आने का दावा करने लगा है और चीन, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और भारत सभी देश के वैज्ञानिक केवल इतना ही कह पा रहे हैं कि उनका मानव शरीर पर कोरोना वैक्सीन ट्रायल जारी है। परन्तु वे अभी तक अविष्कार नहीं कर पाये तो क्या यह सच नही है जिसे स्वीकार किया जाये कि यह पूरे विश्व भर के वैज्ञानिकों की शर्मनाम हार है जो इतिहास में काले पन्नों की तरह दर्ज हो गया है। मीडिया का बाजारवाद इस तथ्य को समझने की कोशिश करने की बजाये कोरोना की शर्मनाक प्रस्तुति में जुट गया है। जिस तरह आई.पी.एल के रनों की तालिका बनाई जाती है जैसे वेस्ट इंडीज 100 रन से आगे, या भारत विश्व चैंपियन, उस तरह से कोरोना महामारी का प्रसारण हो रहा है। एक चैनल चिल्ला-चिल्ला कर कहता हैं आज ब्राजिल को भारत ने पीछे छोड़ दिया है, अब भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 10 लाख से पार हो गई हैं, मौत के आंकड़े भी विकेट डाउन होने की तरह प्रस्तुत किये जाते हैं। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी आने वाले समय में कोरोना के भयंकर खतरे को लेकर चेतावनी की अंदाज में बात कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शायद समझ लिया है जब यह 7 महीने का बच्चा (कोविड- 19) 9 महीने के पूरे आकार में अवतरित होगा तब उसका आतंक 'पीक' पर होगा। तब मीडिया का बाजार आंकड़े बटोरने की स्थिति में ही नही होगा। और तो और राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव अपने-अपने राज्यों को 'लाकडाउन' के भरोसे सम्हालना चाहते हैं, वह भी इतनी बड़ी चुनौती होगी कि, पता नही कैसे सम्हाल पायेंगे ये सब 'ट्वीटर प्लेयर'। इसलिए अभी भी वक्त है वैज्ञनीकों के पास दो महीने का, वे इसी सीमा के अंतराल में वैक्सीन की खोज पूरी कर ले और पूरे विश्व को भयंकर मानव त्रासदी के कारण मौत के मुह में जाने से रोक पायें तो शायद 'देर आये दुरूस्त होकर आये' कहकर भी सभी देश वापस पटरी पर लौट जायेंगे। वरना कोविड- 19 के साथ रहने के लिए अब प्रोटोकाल केवल शहरों तक लागू रहे एैसा नही होना चाहिये। राज्य सरकारों को गांव-गांव टीम भेजकर प्रत्येक गांव की आगामी 1 वर्ष में  बुनियादी आवश्यकताएं क्या हो सकती है, अनाज से लेकर सबकुछ जो जीने के लिए क्या जरूरी है, उसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोविड- 19 के खतरे को संज्ञान में लेकर कहा है कि कोरोना अभी गया नही है, सम्हलकर ही रहें तो अच्छा है। परन्तु इस संपादकीय का बड़ा सवाल यही है कि 'कोविड- 19 को लेकर क्या विश्व भर के वैज्ञानिकों की यह शर्मनाक हार नही है, इस सवाल का उत्तर ढने की भी बहस जो लोग रोज मीडिया का दंगल कराते हैं उन्हें करना चाहिए और जो लोग कोरोना के आड़ में भी राजनीति करते हैं कम से कम उन्हें चुप हो जाना चाहिये जब तक कोरोना का इलाज  अथवा करे वैक्सीन का अविष्कार नही जाता है।

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