चीन अपनी आक्रामक हरकतों से बाज नहीं आ रहा, जिससे लगता है कि वह ताईवान को अपने कब्जे में लेने के लिए कोई भी कोशिश नहीं छोड़ना चाहता। पिछले कुछ दिन ताईवान के लिए तनाव भरे थे क्योंकि चीन ने अपनी वायुसेना के 56 लड़ाकू विमानों को ताईवान की हवाई सीमा में भेज दिया था। चीनी विमानों के बेड़े में जे-16 सीरीज, रूस निर्मित एस.यू.-30 और एच-6 सीरीज के विमान शामिल थे।
चीन की इस आक्रामक कार्रवाई को लेकर ताईवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने उसे चेतावनी दी है कि अगर वह ताईवान पर हमला करता है तो ये चीन के विनाश के रूप में देखा जाएगा क्योंकि ताईवान अपने देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ेगा। साथ ही ताईवान ने दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों से चीन के खिलाफ मदद मांगी है। ऐसे समय में पूरी दुनिया चुप बैठी थी लेकिन अमरीका ने इस घटना पर जबर्दस्त कार्रवाई की है और अपने दो युद्धक बेड़ों को चीन की तरफ भेजा है। फिलहाल ये दोनों बेड़े ताईवान सागर में गश्त लगा रहे हैं। ये जगह चीन की नाइन डैशलाइन वाली जगह के बहुत पास है। इस जगह पर ब्रिटेन के युद्धक बेड़े भी तैनात हैं और अमरीकी युद्धक बेड़ों के साथ मिलकर एक बड़ी ड्रिल की है जिससे एक तरफ ताईवान को राहत मिली है तो दूसरी तरफ चीन घबरा गया है।
अमरीका और ब्रिटेन ने जो युद्धाभ्यास यहां पर किया, वह यह ध्यान में रख कर किया कि अगर चीन ताईवान पर आक्रमण करता है तो ये दोनों देश ताईवान की रक्षा कैसे करेंगे। इस युद्धाभ्यास से अमरीका और ब्रिटेन चीन को संदेश देना चाहते हैं कि अगर वह ताईवान पर हमला करता है तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी।
अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि इतनी बड़ी सांझा ड्रिल चीन के पास हो और चीन चुप रह जाए, तो उसने अपने सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के हवाले से धमकी भरे अंदाज में कहा है कि अमरीका और ब्रिटेन को दक्षिणी चीन सागर में ताईवान की मदद नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह चीन का अंदरूनी मामला है और अगर चीन के सागरीय क्षेत्र में इस पैमाने पर बड़ी ड्रिल होंगी तो यह तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत होगी। चीन की इस धमकी के बाद पूरी दुनिया का ध्यान दक्षिणी चीन सागर की तरफ चला गया है। अगली एक भी आक्रामक कार्रवाई बारूद के ढेर पर चिंगारी का काम करेगी। पूरे दक्षिण-पूर्वी एशिया में इस समय हालात तनावपूर्ण हैं।
लेकिन चीन ऐसी धमकी देेते समय भूल गया कि अफगानिस्तान और ताईवान में बहुत फर्क है, अफगानिस्तान के डूबने से न तो अमरीका को कोई फर्क पडऩे वाला है और न दुनिया को, लेकिन ताईवान, जो एक लोकतांत्रिक देश है, साथ ही विज्ञान और तकनीकी उद्यमिता में दुनिया के अग्रणी देशों में गिना जाता है, उसे अमरीका कैसे छोड़ सकता है। जब अमरीकी मीडिया और दूसरी एजैंसियों ने पेंटागन से इस बाबत सवाल पूछे तो पेंटागन ने वॉल स्ट्रीट जर्नल की इस खबर की पुष्टि कर दी। साथ ही पेंटागन ने यह भी बताया कि इन्हें आज से करीब एक वर्ष पहले तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में ताईवान भेजा था।
बाद में बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के पश्चात भी ये सैनिक वहीं पर हैं और अपना काम कर रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि ताईवान को लेकर ट्रम्प और बाइडेन की नीतियों में कोई अंतर नहीं है, दोनों ही यह जानते हैं कि चीन कितना खतरनाक देश है और इससे निपटना हर हालत में जरूरी है। पूरी दुनिया जानती है कि चीन ताईवान को हर तरीके से कब्जाना चाहता है, ऐसे में चीन के ताईवान के अभियान को दो तरीके से रोका जा सकता है। पहला, ताईवान के पास परमाणु हथियार हो और दूसरा, ताईवान में अमरीकी सैनिकों की मौजूदगी हो। लेकिन अमरीका ने सैनिकों की संख्या का खुलासा नहीं किया है।
चीन यह बात अच्छी तरह से जानता है कि अगर ताईवान के पास परमाणु बम आएगा तो उससे पहले ही चीन को पता चल जाएगा, वहीं अगर अमरीका अपने सैनिकों को ताईवान भेजेगा तो इस बात की खबर भी चीन को पहले से लग जाएगी, जिससे चीन अमरीकी सैनिकों के ताईवान पहुंचने से पहले ही उस पर हमला कर देगा। लेकिन अमरीका ने तुरुप का पत्ता चल दिया और खुफिया तरीके से अपने सैनिकों को ताईवान भेज किया। ताईवान अब चीन के गले की वह हड्डी बन गया है, जो न तो उससे निगलते बन रही है और न ही उगलते।
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